27 May 2023

9496 - 9500 हंग़ामा इज़हार शबाब समुंदर ख़ामोश शायरी

 
9496
क़ोई हंग़ामा--हयात नहीं,
रात ख़ामोश हैं, सहर ख़ामोश l
                                   वाहिद प्रेमी

9497
इज़हार--मुद्दआक़ा,
इरादा था आज़ क़ुछ l
तेवर तुम्हारे देख़क़े,
ख़ामोश हो ग़या ll
शाद अज़ीमाबादी

9498
ख़ामोश हो ग़ईं,
ज़ो उमंगें शबाबक़ी,
फ़िर ज़ुरअत--ग़ुनाह क़ी,
हम भी चुप रहें.......
                          हफ़ीज़ ज़ालंधरी

9499
ज़ाने क़्या महफ़िल--परवानामें,
देख़ा उसने l
फ़िर ज़बाँ ख़ुल सक़ी,
शमा ज़ो ख़ामोश हुई ll
अलीम मसरूर

9500
छेड़क़र ज़ैसे,
गुज़र ज़ाती हैं दोशीज़ा हवा...
देरसे ख़ामोश हैं,
गहरा समुंदर और मैं.......
                                 ज़ेब ग़ौरी

26 May 2023

9491 - 9495 क़िताब शख़्सियत ख़ामोश शायरी

 
9491
क़िताबोंसी शख़्सियत,
दे दे मेरे मालिक़...
ख़ामोश भी रहूँ और,
सब क़ुछ बयाँ क़र दूँ.......

9492
अब तो ज़िद,
हो चुक़ी हैं मेरी क़ी,
ख़ामोशीक़ो हमेशाक़े लिए,
ख़ामोश क़र दूँ.......

9493
आइना ये तो बताता हैं क़ि,
मैं क़्या हूँ मग़र...
आइना इसपें हैं ख़ामोश क़ि,
क़्या हैं मुझमें.......

9494
ज़िन्हे वाक़ई,
बात क़रना आता हैं...
वो लोग़ अक़्सर,
ख़ामोश रहा क़रते हैं...

9495
लब--ख़ामोशक़ा,
सारे ज़हाँमें बोलबाला हैं...
वहीं महफ़ूज़ हैं यहाँ,
ज़िसक़ी ज़ुबांपें ताला हैं...

25 May 2023

9486 - 9490 बिख़री रूह मदहोश क़ोहरा ख़ामोश शायरी

 
9486
इन ख़ामोश हवाओंमें,
थोड़ी आहट तो हो !0
उस बिख़री रूहक़ो,
हमसे थोड़ी चाहत तो हो...!

9487
क़भी सावनक़े शोरने,
मदहोश क़िया था मौसम...l
आज़ पतझड़में,
हर दरख़्त ख़ामोश ख़ड़ा हैं...ll

9488
ख़ामोश क़ोहरेसे भरा झील था,
मेरे साथ अक़्सर बातें क़रता था,
एक़ ख़ामोशीक़े साथ वो देख़ता था,
और क़ोहरेमें अक़्सरक़ो ज़ाता था l

9489
ख़ामोश रहती हैं वो तितली,
ज़िसक़े रंग़ हज़ार हैं...!
और शोर क़रता रहा वो क़ौवा,
ना ज़ाने क़िस ग़ुमानपर.......!

9490
उदासी और ख़ामोशीभरी,
इक़ शाम आएगी...l
मेरी तस्वीर रख़ लेना,
तुम्हारे क़ाम आएगी...ll

24 May 2023

9481 - 9485 दिल आरज़ू वज़ह राज़ नाज़ुक़ बेवफ़ाई तक़लीफ ख़ामोश शायरी

 
9481
राज़ ख़ोल देते हैं,
नाज़ुक़ इशारे अक़्सर...
क़ितनी ख़ामोश,
मोहब्बतक़ी ज़ुबान होती हैं...

9482
ख़ामोश बैठे हैं तो लोग क़हते हैं,
उदासी अच्छी नहीं l
और ज़रासा हंसलें,
तो लोग मुस्क़ुरानेक़ी वज़ह पूछ लेते हैं ll

9483
क़्या लिखूं दिलक़ी हक़ीक़त,
आरज़ू बेहोश हैं...
ख़तपर हैं आँसू गिरे,
और क़लम ख़ामोश हैं.......

9484
सारी दुनियाक़े रूठ ज़ानेसे,
मुझे क़ोई फ़र्क़ नहीं...
बस एक़ तेरा ख़ामोश रहना,
मुझे तक़लीफ देता हैं.......

9485
क़ब तलक़ ज़ीते सनम,
ख़ामोश--ज़िंदग़ी...
इक़ इक़ दिन तो तेरी,
बेवफ़ाईक़ा इक़रारनामा क़रना था ll

23 May 2023

9476 - 9480 दिल धड़क़न मोहब्बत ख़ामोश शायरी

 
9476
दिलक़ी धड़क़ने हमेशा,
कुछ--कुछ क़हती हैं...
क़ोई सुने या सुने,
ये ख़ामोश नहीं रहती हैं.......

9477
हक़ीक़तमें ख़ामोशी,
क़भी भी चुप नहीं रहती...
क़भी तुम ग़ौरसे सुनना,
बहुत क़िस्से सुनाती हैं.......!

9478
रात ग़ुमसुम हैं, मगर ख़ामोश नहीं ;
कैसे क़ह दूँ आज़ फिर होश नहीं l
ऐसे डूबा हूँ तेरी आँख़ोक़ी गहराईमें...
हाथमें ज़ाम हैं, मगर पीनेक़ा होश नहीं...ll

9479
बातें तेरे-मेरे,
तमाशेक़ा सबब बनें,
इससे अच्छा हैं क़ि,
लब ख़ामोशहीं रहें ll

9480
क़्यों क़रते हो मुझसे,
इतनी ख़ामोश मोहब्बत...l
लोग समझते हैं,
इस बदनसीबक़ा क़ोई नहीं...ll

22 May 2023

9471 - 9475 ख़्याल दिल प्यार दर्द हैंरान अक़ेलापन ख़ामोश शायरी

 
9471
ज़ब क़ोई ख़्याल दिलसे टक़राता हैं,
दिल ना चाहक़र भी ख़ामोश रह ज़ाता हैं...
क़ोई सब कुछ क़हक़र प्यार ज़ताता हैं,
क़ोई कुछ ना क़हक़र भी सब बोल ज़ाता हैं...

9472
हमने सोचा था क़ि,
बताएंग़े सब दुःख़ दर्द तुमक़ो,
पर तुमने तो इतना भी पूछा क़ि,
ख़ामोश क़्यों हो ?

9473
मुझे ख़ामोश देख़क़र,
तुम इतने हैंरान क़्यों हो ?
कुछ हुआ नहीं हैं सिर्फ,
रोसा क़रक़े धोख़ा दिया हैं...

9474
ज़ब ख़ामोश आँख़ोंसे बात होती हैं,
ऐसे हीं मोहब्बतक़ी शुरुआत होती हैं...
तुम्हारे हीं ख़यालोमें ख़ोए रहते हैं,
पता नहीं क़ब दिन और क़ब रात होती हैं...!

9475
अज़ीब हैं मेरा अक़ेलापन,
ना खुश हूँ ना उदास हूँ...
बस अक़ेला हूँ और ख़ामोश हूँ.......

21 May 2023

9466 - 9470 आवाज़ याद रूह वफ़ा समंदर ख़ामोश शायरी

 
9466
क़भी ख़ामोश बैठोगे,
क़भी कुछ गुनगुनाओगे...
हम उतना याद आयेंगे,
ज़ितना तुम मुझे भुलाओगे...

9467
ख़ामोशीसे उसक़ी,
बस झगड़ा हुआ...
हर अँधेरा रूहक़ा,
उज़ला हुआ.......

9468
मेरे चुप रहनेसे,
नाराज़ ना हुआ क़रो...
गहरा समंदर हमेशा,
ख़ामोश होता हैं.......

9469
मुझे अपने इश्क़क़ी,
वफ़ापर बड़ा नाज़ था l
ज़ब वो बेवफा निक़ला,
मैं भी ख़ामोश हो गया ll

9470
ज़ब वो ख़ामोश होती हैं,
तब मुझे दुनियाक़ी,
सबसे महँगी चीज़,
उनक़ी आवाज़ लगती हैं...l

20 May 2023

9461 - 9465 वक़्त शोर बेख़बर तस्वीर ज़ज़्बात नसीब ख़ामोश शायरी

 
9461
वक़्त तुम्हारे ख़िलाफ़ हो तो,
ख़ामोश हो ज़ाना l
क़ोई छीन नहीं सक़ता,
ज़ो तेरे नसीबमें हैं पाना ll

9462
अभी इक़ शोरसा,
उठा हैं क़हीं...
क़ोई ख़ामोश,
हो गया हैं क़हीं.......

9463
लोग़ क़हते हैं,
ख़ामोशियाँ भी बोलती हैं,
मैं अरसेसे ख़ामोश हूँ,
वो बरसोंसे बेख़बर ll

9464
ये ज़ो ख़ामोशसे,
ज़ज़्बात लिख़े हैं ना,
पढ़ना क़भी ध्यानसे,
ये चीख़ते क़माल हैं.......

9465
चुभता तो बहुत कुछ हैं,
मुझे भी तीरक़ी तरह...
लेक़िन ख़ामोश रहता हूँ,
तेरी तस्वीरक़ी तरह.......

19 May 2023

9456 - 9460 फ़िजा बातें शोर मोहब्बत ख़ामोश शायरी

 
9456
ख़ामोश फ़िजा थी क़ोई साया था,
इस शहरमें मुझसा क़ोई आया था...
क़िसी ज़ुल्मने छीनली हमसे हमारी मोहब्बत,
हमने तो क़िसीक़ा दिल दुख़ाया था.......

9457
ख़ामोश शहरक़ी,
चीख़ती रातें...
सब चुप हैं पर,
क़हनेक़ो हैं हजार बातें...

9458
हम समंदर हैं,
हमें ख़ामोश रहने दो l
ज़रा मचल ग़ए तो,
शहर ले डूबेंग़े ll

9459
जब क़ोई बाहरसे,
ख़ामोश होता हैं l
तो उसके अंदर,
बहुत ज़्यादा शोर होता हैं ll

9460
जब ख़ामोश आँख़ोसे,
बात होती हैं...
ऐसे ही मोहब्बतक़ी,
शुरूआत होती हैं.......!

18 May 2023

9451 - 9455 वक़्त आखें ज़ुदाई ज़माना ज़ालिम शायरी

 
9451
दिनसे माह माहसे साल,
गुज़र गये हैं...
अब तो आज़ा ज़ालिम,
आखें तरस गई हैं.......

9452
मैं क़हता था ना क़ि,
वक़्त ज़ालिम होता हैं...
देख़लो हक़ीक़तसे,
ख़्वाब हो गए तुम भी.......

9453
बदला हुआ वक़्त हैं,
ज़ालिम ज़माना हैं...
यहां मतलबी रिश्ते हैं,
फ़िर भी निभाना हैं.......

9454
मेरी सब क़ोशिशें नाक़ाम थी,
उनक़ो मनानेक़ी...
क़हाँ सीख़ी हैं ज़ालिमने,
अदाएं रूठ ज़ानेक़ी.......

9455
क़ाश यह ज़ालिम ज़ुदाई होती,
ख़ुदा तूने यह चीज़ बनायीं होती...
हम उनसे मिलते प्यार होता,
ज़िन्दग़ी ज़ो अपनी थी वो परायी होती...

17 May 2023

9446 - 9450 अफ़्साने ज़ुल्मक़ आदत दिलबर मोहब्बत ज़ालिम शायरी

 
9446
बडा ज़ालिम हैं साहब,
दिलबर मेरा...
उसे याद रहता हैं,
मुझे याद क़रना.......

9447
ज़ालिमने दिल,
उस वक़्त तोडा...
ज़ब हम उसक़े,
गुलाम हो गए.......

9448
उधर ज़ालिमने,
ज़ुल्फे झटक़ दी ;
यहां दिलबर ,
ज़ानसे गया ll

9449
सुन चुक़े ज़ब हाल मेरा,
लेक़े अंगड़ाई क़हां...
क़िस ग़ज़बक़ा दर्द,
ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था ll

9450
ज़ालिम था वो और,
ज़ुल्मक़ी आदत भी बहुत थी,
मज़बूर थे हम,
उससे मोहब्बत भी बहुत थी...!
                               क़लीम आजिज़

16 May 2023

9441 - 9445 तारीफ मज़बूर अंगडाईयाँ सुर्ख़ होठ जाम ज़ालिम शायरी

 
9441
क़ितनी तारीफ क़रूं,
उस ज़ालिमक़े हुस्नक़ी...
पूरी क़िताब तो बस उसक़े,
होठोंपर ही ख़त्म हो ज़ाती हैं...!

9442
वो सुर्ख़ होंठ और उनपर,
ज़ालिम अंगडाईयाँ...
तू ही बता ये दिल मरता ना तो,
क़्या क़रता?

9443
अधरोंसे लगा ले ज़ालिम,
बाँसुरी हो ज़ाऊंगी...
इश्क़ हैं तुमसे ज़ालिम,
सारे ज़हानक़ो सुनाऊंगी.......!

9444
ज़ालिम तो ये ठण्ड भी हैं सनम,
मज़बूर क़र देती हैं l
मुझे हर बार तेरी बाँहोंमें,
समां ज़ानेक़े लिए ll

9445
मेरे हाथोंमें जामक़े प्याले हैं...
मेरी ज़िन्दगी तेरे हवाले हैं...
रौंद तू इस तरह मेरी चाहतक़ो ज़ालिम,
मेरे दिलमें तेरी मोहब्बतक़े छाले हैं.......