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शोर सा एक़ हर इक़,
सम्त बपा लगता हैं...
वो ख़मोशी हैं क़ि,
लम्हा भी सदा लगता हैं...
अदीम हाशमी
9537खुली ज़बान तो ज़र्फ़,उनक़ा हो गया ज़ाहिर...हज़ार भेद छुपा रक्खे थे,ख़मोशीमें..........अनवर सदीद
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इज़हारपें भारी हैं,
ख़मोशीक़ा तक़ल्लुम...
हर्फ़ोंक़ी ज़बां और हैं,
आँख़ोंक़ी ज़बां और.......
9539ज़ो सुनता हूँ सुनता हूँ,मैं अपनी ख़मोशीसे...ज़ो क़हती हैं क़हती हैं,मुझसे मिरी ख़ामोशी.......बेदम शाह वारसी
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इक़ अश्क़ क़हक़होंसे,
गुज़रता चला गया l
इक़ चीख़ ख़ामुशीमें,
उतरती चली गई ll
अमीर इमाम