1716
लफ्ज जब बरसते हैं,
बूँदें बनकर . . .
मौसम कोई भी हो,
मन भीग ही जाता हैं . . . !
1717
खैरातमें मिली हुई खुशी,
हमे पसंद नहीं हैं,
क्यूँकि हम गममें भी...
नवाबकी तरह जीते हैं l
1718
तुम्हें मालूम हैं,
तुम वो दुआ हो मेरी...
जिसको उमरभर,
माँगा हैं मैंने !
1719
बेजुबान पत्थरपें लदे हैं,
करोंडोंके गहने मंदिरोमें l
उसी देहलीजपें एक रूपयेको
तरसते नन्हें हाथोंको देखा हैं ll
1720
हम उनकी ज़िन्दगीमें,
सदा अंजानसे रहे...
और वो हमारे दिलमें
कितनी शानसे रहे . . . !