4751
तुझको हर बार,
नई नज़रसे
देखा मैने...
मुझको हर बार,
नया इश्क़ हुआ
हैं तुझसे...!
4752
कोई समझे,
तो
एक बात कहूँ...
इश्क़ तौफ़ीक़ हैं,
गुनाह
नहीं.......!
4753
इसी फनकारी पर,
मरते हैं.......
इश्क़ ना हो
जाये तुमसे हमनशीं,
कसमसे बहोत
डरते हैं...!
4754
इश्क़की हद
भले ही,
तुम
तय कर लो;
पर मेरे लिये
तुम्हे याद करनेकी,
कोई हद
नहीं.......!
4755
इनकारकी सी
लज़्ज़त,
इक़रारमें कहाँ...
होता हैं इश्क़ ग़ालिब,
उनकी नहीं
नहीं से...!
मीर तक़ी मीर