19 September 2019

4751 - 4755 नज़र बात तौफ़ीक़ गुनाह हमनशीं डर याद इनकार इक़रार इश्क़ शायरी


4751
तुझको हर बार,
नई नज़रसे देखा मैने...
मुझको हर बार,
नया इश्क़ हुआ हैं तुझसे...!

4752
कोई समझे,
तो एक बात कहूँ...
इश्क़ तौफ़ीक़ हैं,
गुनाह नहीं.......!

4753
इसी फनकारी पर,
मरते हैं.......
इश्क़ ना हो जाये तुमसे हमनशीं,
कसमसे बहोत डरते हैं...!

4754
इश्क़की हद भले ही,
तुम तय कर लो;
पर मेरे लिये तुम्हे याद करनेकी,
कोई हद नहीं.......!

4755
इनकारकी सी लज़्ज़त,
इक़रारमें कहाँ...
होता हैं इश्क़ ग़ालिब,
उनकी नहीं नहीं से...!
                       मीर तक़ी मीर

4746 - 4750 नादान काजल जुल्फें इंतजाम मोहब्बत बाजी आँख अश्क़ जान शायरी


4746
थोड़े बदमाश हो तुम,
थोड़े नादान हो तुम;
हाँ मगर ये सच हैं,
हमारी जान हो तुम...!

4747
क्युँ तुले हो मेरी "जान" लेनेको
जनाब...?
"जान" भी "तुम" हो और,
ये जानते भी "तुम" हो...!

4748
ये लाली, ये काजल,
ये जुल्फें भी खुली खुली...
तुम यूँ ही जान मांग लेती,
इतना इंतजाम क्यूँ किया...!

4749
तुमसे किसने कह दिया की,
मोहब्बतकी बाजी हार गए हम...
अभी तो दांवमें चलनेके लिए,
हमारी जान बाकी हैं.......!

4750
जान--तन्हापे,
गुजर जायें हजारो सदमें,
आँखसे अश्क़ रवाँ हों,
ये ज़रूरी तो नहीं...!

18 September 2019

4741 - 4745 ख्वाहिश उम्र फर्ज ख़्वाब कैद आसमान मेहबूब जमानत अरमान शायरी


4741
हजारो ख्वाहिशें ऐसी की,
हर ख्वाहिशपे दम निकले...
बहुत निकले मेरे अरमान,
लेकिन फिर भी कम निकले...!

4742
उम्र गुजर रही हैं,
तराजूके काँटेको संभालनेमें;
कभी फर्ज भारी होते हैं,
तो कभी अरमान.......!

4743
कल यहाँ ख़्वाबोंकी,
फसलें देखना तुम...
आज कुछ अरमान,
अपने बो रहा हूँ...!

4744
करो कैद किसी परिंदेको,
कभी पिंजरेमें।
उसके भी अरमान हैं,
उड़ने दो उसे खुले आसमानमें।।

4745
मेरे मेहबूबके ह्रदयमें,
मुझे उम्रकैद मिले...
थक जायें सारे वकील,
फिर भी जमानत ना मिले...!

17 September 2019

4736 - 4740 हसीन धड़कन साँस यादें आँख आँसू मुस्कान शिकायते अरमान शायरी


4736
चाहा हैं तुम्हें अपने अरमानसे भी ज्यादा,
लगती हो हसीन तुम मुस्कानसे भी ज्यादा, 
मेरी हर धड़कन हर साँस हैं तुम्हारे लिए,
क्या माँगोगे जान मेरी जानसे भी ज्यादा।

4737
दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,
बाते रह जाती हैं कहानी बनकर,
पर यार हमेशा साथ रहते हैं;
कभी मुस्कान तो कभी,
आँखोंका पानी बनकर...!

4738
खुदको देखकर आईनेमें,
आँसू निकल आये...
दूसरोंको मुस्कान देनेकी खातिर,
खुदको क्या बना लिया.......!

4739
उस मुस्कानसे खूबसूरत, 
और कुछ नहीं हैं...
जो आँसुओंसे संघर्ष कर,
आती हैं.......

4740
यु तो आपसे,
शिकायते बहूत हैं...
पर आपकी एक मुस्कान,
काफी हैं सुलहके लिए.......!

16 September 2019

4731 - 4735 ज़िंदगी काजल तबाह कत्ल अश्क लब लहज़ा मासूम अल्फाज़ याद मुस्कान शायरी


4731
थोड़ा काजल लगा लिया,
थोड़ी मुस्कान बिखरा दी...
खुद तो सज गए हुज़ूर,
और हमें तबाह कर दिया...!

4732
चेहरेपे मुस्कान लिए,
फिरने वाले...
रखते हैं ज़िंदगीको,
हैरांन करके.......!

4733
क्या खाक कत्लखाने बन्द हो रहें हैं...?
तेरी मुस्कान तो जस की तस हैं.......!!!

4734
वही शख्स मुझे,
अश्कोकी आहें दे गया...
जिसके लबोपे मैने,
हमेशा मुस्कान चाही.......

4735
तेरी मुस्कान, तेरा लहज़ा और...
तेरे मासूमसे अल्फाज़...!
और क्या कहुँ...
बस बहुत याद आते हो तुम...!!!

15 September 2019

4726 - 4730 तावीज दौलत मुकाम काफिला ज़िंदगी जमाना नींद कब्र अजीब बात होठ सुकून शायरी


4726
सारे तावीज पहनकर देख लिए,
सुकून तो बस,
तुझे देखनेसे ही मिलता हैं...!

4727
कही बिक रहा हो सुकून,
तो बताओ.......
हम दौलत बेशुमार,
लेकर बैठे हैं.......

4728
"अजब मुकामपे,
ठहरा हुआ हैं काफिला जिंदगीका;
सुकून ढूढनें चले थे,
नींद ही गवा बैठे......."

4729
कहते हैं कब्रमें,
सुकूनकी नींद होती हैं;
अजीब बात हैं की यह बात भी,
जिन्दा लोगोने कही हैं...!

4730
होठोंपे मुस्कान थी,
कंधोपे बस्ता था;
सुकूनके मामलेमें,
वो जमाना सस्ता था...

12 September 2019

4721 - 4725 दिल सपना शौक जिन्दगी हासिल ग़ज़ल आवाज़ सुकून शायरी


4721
सबने खरीदा सोना, मैने एक सुई खरीद ली...
सपनोंको बुनने जितनी डोरी खरीद ली।
शौक--जिन्दगी कुछ कम किये,
फिर सस्तेमें ही सुकून--जिन्दगी खरीद ली।।

4722
बहुत सुकून हैं,
सुन रात तेरी बाँहोंमें...
सारा दिन चलता हूँ,
तुझ तक आनेके लिए...!

4723
जरूरी नही कि सबके दिलोंमें,
धड़का ही जाऐ...
कुछ लोगोंके दिलोंमें खटकना भी,
एक सुकून देता हैं.......!

4724
इन "शायरियों" में खो गया हैं,
कहीं "सुकून" मेरा...!
जो तुम "पढ़कर" मुस्कुरा दो,
तो "हासिल" हो जाए.......!

4725
कैसे सुकून पाऊँ तुझे देखनेके बाद,
अब क्या ग़ज़ल सुनाऊँ तुझे देखनेके बाद;
आवाज़ दे रही हैं मेरी ज़िन्दगी मुझे,
जाऊँ के या जाऊँ तुझे देखनेके बाद...!

11 September 2019

4716 - 4720 जिंदगी जमाने लफ्ज़ दीवार बेचैनियाँ जहन चेहरे सुकून शायरी


4716
ये जिंदगी हैं जनाब...
जीना सिखाये बगैर,
मरने हीं देती...!

4717
लफ्ज़ोंके दाँत नहीं होते,
पर ये काट लेते हैं;
दीवारें खड़ी किये बगैर,
हमको बाँट देते हैं ll

4718
रोये बगैर तो प्याज भी,
नही कटता जनाब...
फिर ये तो जिदंगी हैं,
ऐसे कैसे कट जायेगी...!

4719
कितनी बेचैनियाँ हैं,
जहनमें तुझे लेकर...
पर तुझसा सुकून भी,
और कहीं नहीं.......!

4720
चेहरेपर सुकून तो बस,
दिखाने भरका हैं 
वरना बेचैन तो हर शख्स,
जमाने भरका हैं ।।

4711 - 4715 दिल इश्क़ बेचैनियाँ यार याद आँखें साँसे ज़िन्दगी कारवाँ वक़्त बेचैन शायरी


4711
बेचैनियाँ बाजारमें,
नहीं मिला करती यारों...
बाँटने वाला कोई,
बहुत नजदीकी होता हैं...!

4712
बेताब आँखें... बेचैन दिल...
बेपरवाह साँसे... बेबस ज़िन्दगी...
बेहाल हम... बेख़बर तुम.......

4713
थकान, टूटन, उदासी,
ऊब, बेचैनी, अकेलापन...
तुम्हारी यादके संग,
इतना लम्बा कारवाँ क्यूँ हैं...?

4714
चैनकी ज़िंदगी थी मेरी,
उनके बगैर भी...
बस उन्होंने अपना कहके,
मुझे बेचैन कर दिया.......!

4715
वक़्तको भी हुआ हैं,
ज़रूर किसीसे इश्क़...
जो वो बेचैन हैं इतना कि,
ठहरता ही नहीं.......!

9 September 2019

4706 - 4710 ज़िन्दगी मोहब्बत हसीन बेवजह इल्जाम शायरी


4706
हर बार हमपर इल्जाम,
लगा देते हो मोहब्बतका...
कभी खुदसे भी पुछा हैं की,
तुम इतने हसीन क्यों हो...!

4707
कोई इल्जाम रह गया हो,
तो वो भी दे दो...
पहले भी हम बुरे थे,
अब थोड़े और सही.......

4708
छोड दो खुदको,
सही साबित करनेको, जनाब...
ज़िन्दगी हैं,
कोई इल्जाम नही...!

4709
इल्जाम लगाने वाले लोग,
मुझे बहुत पसंद आते हैं l
क्योंकि यही तो वह लोग हैं,
जो मेरे अंदरकी कमी बताते हैं ll

4710
बेवजह सरहदोंपर,
इल्जाम है बंटवारेका...
लोग मुद्दतोंसे एक घरमें भी,
अलग अलग रहते हैं.......

8 September 2019

4701 - 4705 जिंदगी प्यार मुसीबत यार ज़माने आईना लफ्ज खुशियाँ अरमान परेशान पहचान शायरी


4701
भूलकर भी, मुसीबतमें,
पड़ना कभी...
खामखां अपने और परायोंकी
पहचान हो जाएगी...!

4702
यार तू साथ था तो,
ज़मानेमें चर्चे थे मेरे...!
तेरे जानेके बाद ना भी,
मुझसे मेरी पहचान पूछता हैं...!

4703
पहचानकी नुमाईश,
ज़रा कम करो...
जहाँ "मैं" लिखा हैं,
उसे "हम" करो...!

4704
खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं
जिसे भी देखो परेशान बहुत हैं ।।
करीबसे देखा तो निकला रेतका घर
मगर दूरसे इसकी शान बहुत हैं ।।
कहते हैं सचका कोई मुकाबला नहीं
मगर आज झूठकी पहचान बहुत हैं ।।
मुश्किलसे मिलता है शहरमें आदमी
यूँ तो कहनेको इन्सान बहुत हैं ।।

4705
कभी संभले तो कभी बिखरते नजर आये हम,
जिंदगीके हर मोड़पर खुदमें सिमटते आये हम !
यूँ तो जमाना कभी खरीद नहीं सकता हमें,
मगर प्यारके दो लफ्जोमें सदा बिकते आये हम !
हम खुद रुठ जाते हैं, और खुदको मनानेके साथ आपको भी मनाते हैं,
खुदा करे हम जैसी महबूबा किसीको ना मिले,
जो प्यारकी नोकझोकका मजा ही ले पाये...!
                                                                   भाग्यश्री