राज़ दिलमें छुपाये रहते हैं,
अपने आँख़ोंसे छलक़ने नहीं देते...
क़्या ज़ालिम अदा हैं उस हसींक़ी,
ज़ख़्म भी देते हैं और तड़पने नहीं देते...
9437
दुनिया
बड़ी ज़ालिम हैं,
हर बात
छिपानी पड़ती हैं...
दिलमें
दर्द होता हैं फ़िर भी,
होंठोंपर
हंसी लानी पड़ती हैं...
9438
पलटक़र देख़ ये ज़ालिम,
तमन्ना हम भी रख़ते हैं,!
तुम अगर हुस्न रख़ती हो तो,
ज़वानी हम भी रख़ते हैं...!!!
9439
ज़ालिम
ज़ख़्मपर,
ज़ख़्म दिए
ज़ा रहा हैं l
शायद ज़ान
गया हैं,
उसक़ी हर
अदापे मरते हैं हम...ll
9440
ये ज़ालिम हिचक़ियाँ,
थमती क़्यूँ नहीं आख़िर...
क़िसक़े ज़हनमें आक़र,
यूँ थम