12 July 2016

371 याद महफ़िल आज-कल सुना ग़म छुपा मुस्कुरा अज़ीज़ शायरी


371

Ajiz, Heartthrob

महफ़िलमें कुछ तो सुनाना पड़ता हैं;
ग़म छुपाकर मुस्कुराना पड़ता हैं;
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे;
आज-कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता हैं

Something is to be Enumerate in The Concert;
Is to be smiled by hiding Pains;
Sometimes I was also Heartthrob;
Now a days this thing is also to be made remind her.

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