20 September 2016

558 इश्क औक़ात जमाने कबख़्त कीमत मुफ़्त नीलाम शायरी


558

Neelami, Auction

औक़ात नहीं थी जमानेमें 
जो मेरी कीमत लगा सके,
कबख़्त इश्कमें क्या गिरे,
मुफ़्तमें नीलाम हो गए

Incapable was the Society,
To Tag my Price...
Damned, What I felt in Love,
That Auctioned me in Free...

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