2146
बारिशमें चलनेसे
एक बात याद आई..!!
इंसान जितना संभलके कदम बारिशमें रखता हैं,
उतना संभलकर ज़िन्दगीमें रखे तो
गलतीकी गुन्जाईश ही न हो...!
2147
शायरी खुदकुशीका धंधा हैं,
लाश अपनी हैं अपना ही कंधा हैं...
आईना बेचता फिरता हैं शायर,
उस शहरमें जो शहर अंधा हैं...
2148
जहरके असरदार होनेसे,
कुछ नहीं होता,
खुदा भी राजी होना चाहिए,
मौत
देनेके लिये !!
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हजारो मिठाईयाँ चखी हैं जमानेंमें,
खुशीके आँसूसे मीठा कुछ भी नहीं।
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कोशिश तो रोज़ करते हैं
के वक़्तसे समझौता करलें...
कम्बख़्त दिलके कोनेमें
छुपी उम्मीद मानती ही नहीं...