31 December 2018

3701 - 3705 साथ वाकीफ लम्बी रात मुलाकात एहसास साल शायरी


3701
किसीको किसीसे,
कम आँकिये साहब...
देखो, दिनोंने मिलकर,
साल बदल दिया.......!

3702
लोग नये सालमें,
बहुत कुछ नया माँगेंगे...
पर मुझे तो वहीं उनका,
पुराना साथ चाहिए.......!

3703
पिछला साल बातोंमें बीत गया,
दुआ करो.......
आने वाला साल मुलाकातोंमें बीते...!

3704
चलो हम कुछ साल पिछे जाए,
फिरसे एक बार...
एक दुसरेमें खो जाए...
देखे शायद वाकीफ हम एक दुसरेको,
पुरी तरहसे समझ पाए.......!
भाग्यश्री

3705
वो पलमें बीते साल लिख़ूँ,
या सदियों लम्बी रात लिख़ूँ...
मैं तुमको अपने पास लिख़ूँ,
या दूरीका एहसास लिख़ूँ.......!

30 December 2018

3696 - 3700 मोहब्बत नफरत तारीख सम्भाल खर्च किराया आख़िरी खत्म संवर साल शायरी


3696
किसी सख़्त पिताकी तरह,
होता है "साल"...
मुट्ठीमें ढेरों तारीखें;
लेकिन खर्च करनेको,
रोज़ एक ही देता हैं...!

3697
काश के कोई मेरा अपना,
सम्भाल ले मुझको;
बहुत थोड़ा रह गया हूँ मैं भी,
इस सालकी तरह.......!

3698
"मोहब्बत" की तरह "नफरत" का भी,
सालमें एक ही दिन तय कर दो कोई
ये रोज़-रोज़की नफरतें,
अब अच्छी नहीं लगतीं...

3699
मेरे दिलमें रहने वालों,
अब तो किराया दे दो...
सालका आख़िरी दिन भी
गया हैं.......!

3700
मैं अगर खत्म भी हो जाऊँ,
इस सालकी तरह...
तुम मेरे बाद भी संवरते रहना,
नए सालकी तरह.......!

29 December 2018

3691 - 3695 ताजमहल प्यार दस्तक बेईमान इंसान तकलीफ राज़ मक़ान मशवरा अल्फ़ाज़ दिल शायरी


3691
कितना बेईमान हैं,
ये कमबख्त दिल...
धड़का भी तो,
बस तेरीही दस्तकपें...!

3692
प्यारकी आँचसे तो,
पत्थर भी पिघल जाता हैं;
सचे दिलसे साथ दे तो,
नसीब भी बदल जाता हैं;
प्यारकी राहोंपर,
मिल जाए सच्चा हमसफ़र;
तो कितना भी गिरा हुआ इंसान भी,
संभाल जाता हैं.......!

3693
हर तकलीफसे इंसानका,
दिल दुखता बहुत हैं;
पर हर तकलीफसे,
इंसान सीखता भी बहुत हैं...

3694
दिलके राज़ पहुँच गये ग़ैरोंतक...
अपनोसे बस मशवरा किया था.......!

3695
टूटे मक़ान वाला,
दिलमें ताजमहल रखता हूँ;
बात गहरी मगर,
अल्फ़ाज़ सरल रखता हूँ...!

28 December 2018

3686 - 3690 मोहोब्बत खुशबू अजनबी उम्मीद तमन्ना तबाही वाकिफ़ खबर सजा इरादा उजाले दिल शायरी


3686
खुशबू हवाकी चुपकेसे,
कानोंमें कह गई...
पास तो नहीं हो मगर,
दिलमें बसे हो तुम...!

3687
दिल चाहता हैं कि फ़िर,
अजनबी बनकर देखें...
तुम तमन्ना बन जाओ,
हम उम्मीद बनकर देखें...!

3688
मेरे दिलसे निकलनेका,
रास्ता ढूंढ सके तुम...
और कहते थे तुम्हारी,
रग रगसे वाकिफ़ हैं हम...

3689
सारे शहरको इस बातकी
खबर हो गयी...
क्यो ना सजा दे
इस कमबख्त दिलको...
दोस्तीका इरादा था
और मोहोब्बत हो गयी...!

3690
रास्ते खुद ही तबाहीके निकाले हमने,
कर दिया दिल किसी पत्थरके हवाले हमने;
हाँ मालूम हैं क्या चीज़ हैं मोहब्बत यारो...
अपना ही घर जलाकर देखें हैं उजाले हमने।

3681 - 3685 तमन्ना गम आँख होंठ जज्बात ख्याल लफ्ज आशिक इल्जाम क़त्ल चाह इश्क दिल शायरी


3681
दिलमें तमनाओंको दबाना सीख लिया,
गमको आँखोंमें छिपाना सीख लिया;
मेरे चहरेसे कहीं कोई बात जाहिर ना हो,
दबाके होंठोंको हमने मुस्कुराना सीख लिया...

3682
बातें ऐसे करो की जज्बात कभी कम हों
ख्यालात ऐसे रखो कि कभी गम हो;
दिलमें अपने इतनी जगह दे देना हमें,
कि खाली-खालीसा लगे जब हम हो...

3683
लफ्जोंसे इतना आशिकाना,
ठीक नहीं हैं साहब...
किसीके दिलके पार हुए तो,
इल्जाम क़त्लका लगेगा...

3684
जरुरी तो नहीं,
हर चाहतका मतलब इश्क हो...
कभी कभी कुछ अनजान रिश्तोंके लिए भी,
दिल बेचैन हो जाता हैं...!

3685
आशियाने बनें भी,
तो कहाँ जनाब...
जमीनें महँगी हो चली हैं, और...
दिलमें लोग जगह नहीं देते.......!

27 December 2018

3676 - 3680 दुनियाँ किरदार तन्हां ज़माना धोकेबाज़ निगाह दौलत यादें वफा शायरी


3676
ना ढूंढ मेरा किरदार,
दुनियाँकी भीड़में...
वफादार तो हमेशा,
तन्हां ही मिलते हैं...

3677
ज़माना वफादार नहीं हुआ,
तो क्या हुआ...
धोकेबाज़ तो हमेशा,
अपने ही होते हैं...!

3678
दोस्तको दौलतकी,
निगाहसे मत देखो;
वफा करने वाले दोस्त,
अक्सर गरीब हुआ करते हैं...!

3679
बेवफा लोग,
बढ़ रहे हैं धीरे धीरे;
इक शहर अब,
इनका भी होना चाहिए...!

3680
तेरी वफासे,
तो तेरी यादें अच्छी हैं...
रूलाती तो हैं,
पर हमेशा साथ तो रहती हैं...!

25 December 2018

3671 - 3675 मोहब्बत खुशबू इंतजार रूह नादान जिस्म तड़प साँस कर्ज खुशबू कबूल झलक वफा शायरी


3671
वफाका जिकर होगा,
वफाकी बात होगी,
अब मोहब्बत जिससे भी होगी,
रुपये ठिकाने लगानेके बाद होगी...

3672
जो भी  मिले अपनोंसे,
करना कबूल हँसकर...
वफा थी पास मेरे,
वफा हम कर गये;
है उनके कर्जदार,
जो बहोत कुछ सिखा गये

3673
लौट आओ और मिलो उसी तड़पसे,
अब तो मुझे मेरी वफाओंका सिला दे दो;
इंतजार ख़त्म नहीं होता है आँखोंका,
किसी शब् अपनी एक झलक दे दो।

3674
अपनी वफ़ाका,
इतना दावा कर नादान...
मैने रूहको जिस्मसे,
बे-वफाई करते देखा हैं.......!

3675
समझ मैं भूल गया हूँ तुझे,
तेरी खुशबू मेरे साँसोमें आज भी हैं
मजबूरीयोंने निभाने दी मोहब्बत,
सच्चाई मेरी वफाओमें आज भी हैं

24 December 2018

3666 - 3670 दिल मोहब्बत चाह उम्मीद जिस्म ज़ख्म चोट मज़बूरी बात इम्तिहान बेवफा शायरी


3666
मालुम हैं वो अब भी,
चाहती हैं मुझे;
वो थोड़ी जिद्दी हैं,
मगर बेवफा नहीं...!

3667
मत रख हमसे वफाकी उम्मीद,
हमने हर दम बेवफाई पाई हैं;
मत धुंढ हमारे जिस्मपें ज़ख्मोके निशान,
हम ने हर चोट दिलपें खाई हैं...!

3668
उनसे अब कोसों दूर,
रखना मुझे खुदा;
यूँ बार बार बेवफाओंका सामना,
मेरे बसकी बात नहीं...!

3669
कुछ अलग ही करना हैं,
तो वफ़ा करो
मज़बूरीका नाम लेकर,
बेवफाई तो सभी करते हैं...

3670
वफाके बदले बेवफाई ना दिया करो,
मेरी उमीद ठुकराकर इन्कार ना किया करो;
तेरी मोहब्बतमें हम सब कुछ खो बैठे,
जान चली जायेगी इम्तिहान ना लिया करो...

3661 - 3665 प्यार इजहार ज़माना तन्हाई ज़िदगी चाँद तारे फुर्सत बारिश कसूर बेवफा शायरी


3661
चाँद तारे ज़मीन पर लानेकी ज़िद थी,
हमें उनको अपना बनानेकी ज़िद थी,
अच्छा हुआ वो पहले ही हो गयी बेवफा,
वरना उन्हे पानेको ज़माना जलानेकी ज़िद थी...

3662
किताब--इश्क लिखनेकी,
मुझे फुर्सत नहीं साहिब...
अभी तक बेवफाईपर ही,
मेरी तहकीकात जारी हैं...!

3663
कसूर तो था इन निगाहोका,
जो चुपकेसे दिदार कर बैठा...
हमने तो खामोश रहनेकी ठानी थी,
पर बेवफा --जुबाँ इजहार कर बैठा...!

3664
बारिश तो बरसी हैं,
आज भी मुझे भिगोकर...
बेवफा... क्या करे...
तेरे दुपट्टेकी वो छत,
जो सरपर नहीं...!

3665
कुछ इस तरह मेरी ज़िदगीको,
मैने आसान कर लिया।
भूलकर तेरी बेवफाई,
मेरी तन्हाईसे प्यार कर लिया।

22 December 2018

3656 - 3660 मोहब्बत फुरसत चाह इजाज़त खून कतरे आँख जुदा बेशक कसूर तकदीर बेवफा शायरी


3656
फुरसतमें करेगें हिसाब,
तुझसे -बेवफा...
अभी तो उलझे हैं,
खुदको सुलझानेमें...!

3657
यूँ तो कोई तन्हा नहीं होता,
चाहकर भी कोई किसीसे जुदा नहीं होता...
मोहब्बतको मजबूरिया ले डूबती हैं,
वरना हर कोई बेवफा नहीं होता...!

3658
इज़ाज़त हो तो तेरे चहेरेको,
देख लूँ जी भरके...
मुद्दतोंसे इन आँखोंने,
कोई बेवफा नहीं देखा.......!

3659
बेवफा कहनेसे पहले,
मेरी रग रगका खून निचोड़ लेना;
कतरे कतरेसे वफ़ा ना मिले,
तो बेशक मुझे छोड़ देना...

3660
चाँदका क्या कसूर अगर रात बेवफा निकली
कुछ पल ठहरी और फिर चल निकली
उनसे क्या कहे वो तो सच्चे थे
शायद हमारी तकदीर ही हमसे खफा निकली