18 October 2022

9261 - 9265 क़ाएनात दश्त आँख़ें नज़र साया ख़्वाब दास्ताँ आरज़ू वुसअत शायरी

 

9261
नज़र और,
वुसअत--नज़र मालूम,
इतनी महदूद,
क़ाएनात नहीं.......
                       माइल लख़नवी

9262
ये तेरी आरज़ूमें बढ़ी,
वुसअत--नज़र ;
दुनिया हैं सब मिरी.
निग़ह--इंतिज़ारमें ll
अज़ीज़ लख़नवी

9263
आँख़ें बनाता,
दश्तक़ी वुसअतक़ो देख़ता !
हैरत बनाने वालेक़ी,
हैरतक़ो देख़ता.......!!!
                       अहमद रिज़वान

9264
ज़ाग़ता रहता हूँ उसक़ी,
वुसअतोंक़े ख़्वाबमें...
चश्म--हैंराँसे,
बयाँ इक़ दास्ताँ होनेक़ो हैं...!

9265
फ़िर क़ोई,
वुसअत--आफ़ाक़पें साया डाले ;
फ़िर क़िसी आँख़क़े,
नुक़्तेमें उतारा ज़ाऊँ ll
                                 आदिल मंसूरी

17 October 2022

9256 - 9260 सहरा लफ़्ज़ आवाज़ सुख़न दुनिया ख़याल वुसअत शायरी

 

9256
वुसअत--दामन--सहरा देख़ूँ,
अपनी आवाज़क़ो फ़ैला देख़ूँ...!
                               आदिल मंसूरी

9257
ज़िसे चाहिए,
सुख़नक़ी वुसअतें...
ग़म--इश्क़,
दस्तियाब हो उसे.......

9258
मैं ख़ोए ज़ाता हूँ,
तन्हाइयोंक़ी वुसअतमें...
दर--ख़याल दर--ला-मक़ाँ हैं,
या क़ुछ और.......
                       अली अक़बर अब्बास

9259
वुसअतें महदूद हैं,
इदराक़--इंसाँक़े लिए...
वर्ना हर ज़र्रा हैं,
दुनिया चश्म--इरफ़ाँक़े लिए...

9260
लफ़्ज़ लेक़र,
ख़यालक़ी वुसअत,
शेरक़ी ताज़ग़ीक़ी,
सम्त ग़या.......
                 सलीम फ़िग़ार

16 October 2022

9251 - 9255 हुस्न मज़नूँ इश्क़ हौसला निग़ाह नज़र वुसअत शायरी

 

9251
हुस्नक़ो वुसअतें जो दीं,
इश्क़क़ो हौसला दिया...
जो मिले, मिट सक़े,
वो मुझे मुद्दआ दिया.......

9252
अहल--नज़रक़ो,
वुसअत--इम्क़ाँ बहुत हैं तंग़ l
ग़र्दूं नहीं ग़िरह हैं,
ये तार--निग़ाहमें ll
अमीर मीनाई

9253
अहल--नियाज़--दहरसे,
अर्ज़--नियाज़--दिल...
इस वुसअत--नज़रने,
क़िया दर--दर मुझे.......
                      अफ़क़र मोहानी

9254
तिरी हद्द--नज़र,
शाहिद-फ़रोशीक़ी दुक़ाँ तक़ हैं ;
मिरी पर्वाज़क़ी वुसअत,
मक़ाँसे ला-मक़ाँ तक़ हैं ll
मयक़श अक़बराबादी

9255
मज़नूँक़ी तरह वहशी,
सहरा--ज़ुनूँ नहीं...
हैं वुसअत--मशरब,
सेती मैदान हमारा.......
                  सिराज़ औरंग़ाबादी

9246 - 9250 दश्त दर्द दिल फ़ुर्क़त शिक़वा दामन याद वुसअत शायरी

 

9246
क़म नहीं वो भी ख़राबीमें,
वुसअत मालूम...
दश्तमें हैं मुझे,
वो ऐश क़ि घर याद नहीं.......
                            मिर्ज़ा ग़ालिब

9247
एक़ उर्दू शायरने भी,
ऐसाही क़हा हैं l
अर्ज़ो समाँ क़हाँ,
तेरी वुसअतक़ो पा सक़े ll
सरस्वती पत्रिक़ा

9248
धज़्ज़ियाँ उड़नेक़ो,
सीमाब वुसअत चाहिए ;
हैं क़ोई मैदान,
आशोब--ग़रेबाँक़े लिए ll

9249
दर्द अता क़रने वाले,
तू दर्द मुझे इतना दे दे...
जो दोनों ज़हाँक़ी वुसअतक़ो,
इक़ ग़ोश:--दामन--दिल क़र दे...!
बेदम शाह वारसी

9250
बढ़ा दूँ जोड़क़र,
तूल--शब--फ़ुर्क़तक़े टुक़ड़ोंसे,
जो शिक़वोंसे मिरे क़म,
वुसअत--दामान--महशर हो ll
                                      बेदम शाह वारसी

14 October 2022

9241 - 9245 दिल तमन्ना दरिया ख़्वाहिश तन्हाई क़ुबूल क़िस्मत वुसअत शायरी

 

9241
वुसअत--दिल,
और तमन्नाएँ तिरी...
ये हुजूम और,
आस्तान--मुख़्तसर...
                 मयकश अकबराबादी

9242
दरियाक़ी वुसअतोंसे,
उसे नापते नहीं...
तन्हाई क़ितनी ग़हरी हैं,
इक़ ज़ाम भरक़े देख़.......!

9243
इक ज़र्रेमें सहराओंकी,
वुसअत आन समाई...
इक क़तरेमें डूबके,
रह गई सागरकी गहराई...
                   वासिफ़ अली वासिफ़

9244
मुझक़ो नहीं क़ुबूल,
दो-आलमक़ी वुसअतें ;
क़िस्मतमें क़ू--यारक़ी,
दो-ग़ज़ ज़मीं रहे ll
ज़िग़र मुरादाबादी

9245
मेरी ख़्वाहिश थी कि,
लूटूँ लज़्ज़त--दुनिया मगर...
वुसअत--हिर्स--हवासे,
तंग दामाँ हो गया.......
             गोरबचन सिंह दयाल मग़्मूम

13 October 2022

9236 - 9240 बस्तियाँ ख़ामोशि नज़र ग़हराई दर्द दामन वुसअत शायरी

 

9236
बस्तियाँ क़ैसे न,
मम्नून हों दीवानोंक़ी...
वुसअतें इनमें वहीं लाते हैं,
वीरानोंक़ी.......
                          मुख़्तार सिद्दीक़ी

9237
क़ैफ़ पैदा क़र,
समुंदरक़ी तरह l
वुसअतें ख़ामोशियाँ,
ग़हराईयाँ ll
क़ैफ़ भोपाली

9238
नज़रोंसे नापता हैं,
समुंदरक़ी वुसअतें...
साहिलपें इक़ शख़्स,
अक़ेला ख़ड़ा हुआ.......
                   मोहम्मद अल्वी

9239
मैं वुसअतोंसे बिछड़क़े,
तन्हा ज़ी सक़ूँग़ा...
मुझे रोक़ो,
मुझे समुंदर बुला रहा हैं...!
अरशद नईम

9240
यारब, हुजूम--दर्दक़ो,
दे और वुसअतें ;
दामन तो क़्या अभी,
मिरी आँख़ें भी नम नहीं ll
                     ज़िग़र मुरादाबादी

7 October 2022

9231 - 9235 हसरत चाहत ज़ान फ़ासले मोहब्बत शिक़ायत सिलसिला शायरी

 

9231
सिलसिला ये चाहतक़ा,
दोनो तरफ से था l
वो मेरी ज़ान चाहती थी,
और मैं ज़ानसे ज्यादा उसे...ll

9232
ये क़ैसा सिलसिला हैं,
तेरे और मेरे दरमियाँ...
फ़ासले भी बहुत हैं,
और मोहब्बत भी...!

9233
थम ग़या सिलसिला,
मुहब्बतक़ी शिक़ायतोंक़ा...!
ज़ो लोग़ शिक़ायत क़रते थे,
वो आज़ ख़ुद मुहब्बत क़रते हैं...!!!

9234
ठहर ज़ाओ, बोसे लेने दो...
तोड़ो सिलसिला l
एक़क़ो क़्या वास्ता हैं,
दूसरेक़े क़ामसे.......?
परवीन उम्म--मुश्ताक़

9235
हसरतोंक़ा सिलसिला,
क़ब ख़त्म होता हैं ज़लील...
ख़िल ग़ये ज़ब ग़ुल तो,
पैदा और क़लियाँ हो ग़ईं.......
                       ज़लील मानिक़पुरी

6 October 2022

9226 - 9230 सूरज़ उज़ाला रौशनी शिद्दत ज़िग़र क़दम वास्ता क़फ़स वास्ता शायरी

 

9226
असीरान--क़फ़सक़ो,
वास्ता क़्या इन झमेलोंसे ;
चमनमें क़ब ख़िज़ाँ आई,
चमनमें क़ब बहार आई ll
                          नूह नारवी

9227
नई सहरक़े हसीन सूरज़,
तुझे ग़रीबोंसे वास्ता क़्या...
ज़हाँ उज़ाला हैं सीम--ज़रक़ा,
वहीं तिरी रौशनी मिलेग़ी.......
अबुल मुज़ाहिद ज़ाहिद

9528
क़ैसे क़हें क़ि तुझक़ो भी,
हमसे हैं वास्ता क़ोई l
तूने तो हमसे आज़ तक़,
क़ोई ग़िला नहीं क़िया ll
                         ज़ौन एलिया

9229
बुरा भला वास्ता बहर-तौर,
उससे क़ुछ देर तो रहा हैं...
क़हीं सर--राह सामना हो तो,
इतनी शिद्दतसे मुँह मोड़ूँ.......
ख़ालिद इक़बाल यासिर

9230
ज़िग़र वालोंक़ो डरसे,
क़ोई वास्ता नहीं होता l
हम वहाँ भी क़दम रख़ते हैं,
ज़हाँ क़ोई रास्ता नहीं होता ll

9221 - 9225 ज़िक्र फ़िक्र लफ्ज़ याद दास्ताँ पहचान रूह दिल शराब इश्क़ वास्ता शायरी

 

9221
भूली-बिसरी दास्ताँ,
मुझक़ो समझो ;
मैं नई पहचानक़ा,
इक़ वास्ता हूँ.......l
            महफूज़ुर्रहमान आदिल

9222
क़िसक़ा वास्ता देक़र,
रोक़ते उसे.......
मेरा तो सबक़ुछ,
वहीं शख़्स था.......

9223
क़ोई तो वास्ता हैं,
रूहक़ा दिलसे...
ये ज़ख्म ही नहीं,
लफ्ज़ोक़ी चोट भी,
महसूस क़रता हैं...!
               आदिल मंसूरी

9224
इश्क़क़ा उम्रसे,
क़्या वास्ता ज़नाब...
महंग़ी शराब अक्सर,
पुरानी होती हैं.......

9225
ग़रज़ क़िसीसे, वास्ता मुझे,
क़ाम अपने ही क़ामसे l
तिरे ज़िक्रसे, तिरी फ़िक्रसे,
तिरी यादसे, तिरे नामसे ll
                          ज़िग़र मुरादाबादी

4 October 2022

9216 - 9220 नज़र सितम क़दम तन्हा वक़्त मोहब्बत ख़ैरात नफ़रत वास्ता शायरी

 

9216
तेरे निसार साक़िया,
ज़ितनी पियूँ पिलाए ज़ा...
मस्त नज़रक़ा वास्ता,
मस्त मुझे बनाए ज़ा...!!!

9217
लुत्फ़--ज़फ़ा इसीमें हैं,
याद--ज़फ़ा आए फ़िर...
तुझक़ो सितमक़ा वास्ता,
मुझक़ो मिटाक़े भूल ज़ा.......
हादी मछलीशहरी

9218
ख़ैरात क़ी मोहब्बतसे,
हमक़ो वास्ता नहीं...l
तू मेरे हक़क़ी नफ़रत ही,
मुझक़ो लौटा दे.......ll

9219
ज़ो हर क़दमपें,
मिरे साथ साथ रहता था...
ज़रूर क़ोई क़ोई तो,
वास्ता होग़ा.......
आशुफ़्ता चंगेज़ी

9220
उनसे अब हमारा,
क़ोई वास्ता तो नहीं...
लेक़िन आज़ भी उनक़े हिस्सेक़ा,
वक़्त तन्हा ग़ुज़ारते हैं.......

3 October 2022

9211 - 9215 ख़याल ज़िंदग़ी दर्द ज़िस्म तड़प याद बहार मतलब वास्ता शायरी

 

9211
बार--ग़म--ज़हाँ भी हैं,
तेरा ख़याल भी...
हैं क़ितनी वुसअतें,
दिल--आशुफ़्ता-हालमें...
                      ज़ोहरा नसीम

9212
हमें दुनियामें,
अपने ग़मसे मतलब...
ज़मानेक़ी ख़ुशीसे,
वास्ता क़्या.......?
अलीम अख़्तर

9213
मिरी ज़िंदग़ीपें मुस्क़ुरा,
मुझे ज़िंदग़ीक़ा अलम नहीं...
ज़िसे तेरे ग़मसे हो वास्ता,
वो ख़िज़ाँ बहारसे क़म नहीं...
                          शक़ील बदायुनी

9214
तमाम दर्दक़े रिश्तोंसे,
वास्ता रहे...l
हिसार--ज़िस्मसे निक़लूँ तो,
बेसदा हो ज़ाऊँ.......!
ख़लील तनवीर

9215
हमें वास्ता तड़पसे,
हमें क़ाम आँसुओंसे,
तुझे याद क़रक़े रोए...
या तुझे भुलाक़े रोए...!
                     राज़ेन्द्र क़ृष्ण

1 October 2022

9206 - 9210 सज़ा ग़ुनाहग़ार मयक़दे ख़ुशी वास्ते शायरी

 

9206
हद चाहिए सज़ामें,
उक़ूबतक़े वास्ते...
आख़िर ग़ुनाहग़ार हूँ,
क़ाफ़र नहीं हूँ मैं.......
                 मिर्ज़ा ग़ालिब

9207
ला-मक़ाँ हैं वास्ते उनक़ी,
मक़ाम--बूद--बाश...l
ग़ो -ज़ाहिर क़हनेक़ो,
क़लक़त्ता और लाहौर हैं...ll
शाह आसिम

9208
हमारे मयक़देमें,
ख़ैरसे हर चीज़ रहती हैं...
मग़र इक़ तीस दिनक़े वास्ते,
रोज़े नहीं रहते.......
                             मुज़्तर ख़ैराबादी

9209
ज़माने भरक़ो मुबारक़,
ख़ुशीक़ा आलम हो...
हमारे वास्ते यार,
तुम क़हाँ क़म हो.......

9210
यारों इंग्लिश ज़रूरी हैं,
हमारे वास्ते...
फ़ेल होनेक़ो भी इक़,
मज़मून होना चाहिए.......
                        अनवर मसूद