2346
"खुल जाती हैं गांठें सारी,
बस जरासे जतनसे...!
मगर लोग कैचियाँ चलाकर,
सारा फ़साना बदल देते हैं...!"
2347
फासले इस कदर,
आज हैं रिश्तोंमें,
जैसे कोई क़र्ज़ चुका रहा हो,
किस्तोमें.......!
2348
अपनी मर्ज़ीसे भी,
दो चार क़दम चलने दे ज़िन्दगी...l
हम तेरे कहनेपें,
चले हैं बरसों...ll
2349
धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा हैं...
लोग भी... रिश्ते भी...
और कभी कभी,
हम खुद भी.......
2350
एक जैसी ही दिखती थी,
माचिसकी वो तीलियाँ...
“कुछने दिये जलाये”
“और कुछने घर...”