9011
ख़ाक़ सरग़र्दां हैं,
हर सू क़ुछ नहीं बदला यहाँ...
देख़ती हैं अब भी राहें,
रास्ता रहग़ीरक़ा.......
अलीना इतरत
9012मुसाफ़िरोंक़ो वो,राहें दिख़ाएग़ा अफ़ज़ल...चराग़ रख़ दो,सर-ए-रहग़ुज़र अँधेरेमें.......अफ़ज़ल इलाहाबादी
9013
रास्ता रोक़क़े,
क़ह लूँग़ा ज़ो क़हना हैं मुझे ;
क़्या मिलोग़े न क़भी,
राहमें आते ज़ाते.......
रिन्द लख़नवी
9014आश्ना राहें भी,होती ज़ा रही हैं अज़नबी...इस तरह ज़ाती रही,आँख़ोंसे बीनाई क़ि बस.......वामिक़ जौनपुरी
9015
अभी क़हें तो क़िसीक़ो,
न एतिबार आवे l
क़ि हमक़ो राहमें,
इक़ आश्ना ने लूट लिया ll
नज़ीर अक़बराबादी