9066
बुरा भला वास्ता बहर-तौर,
उससे क़ुछ देर तो रहा हैं...
क़हीं सर-ए-राह सामना हो तो,
इतनी शिद्दतसे मुँह न मोड़ूँ.......
ख़ालिद इक़बाल यासिर
9067फ़लक़ने क़ूचा-ए-मक़्सदक़ी,बंद क़ी राहें ;भला बताओ क़ि,क़िस्मत मिरी क़िधरसे फ़िरे ?मुनीर शिक़ोहाबादी
9068
सुनते हैं क़ि क़ाँटेसे,
ग़ुलतक़ हैं राहमें लाख़ों वीराने...
क़हता हैं मग़र ये अज़्म-ए-ज़ुनूँ,
सहरासे ग़ुलिस्ताँ दूर नहीं.......
मज़रूह सुल्तानपुरी
9069लाख़ राहें थीं,वहशतोंक़े लिए...क़िस लिए बंद,राह-ए-सहरा थी...हफ़ीज़ ताईब
9070
लाख़ राहें थीं,
लाख़ ज़ल्वे थे...
अहद-ए-आवारग़ीमें,
क़्या क़ुछ था.......!!!
नासिर क़ाज़मी