6 November 2022

9341 - 9345 क़माल शाएर ग़ज़ल महफ़िल सितम ज़ालिम आरज़ू सुख़न शायरी

 

9341
सुख़न-साज़ीमें लाज़िम हैं,
क़माल--इल्म--फ़न होना...
महज़ तुक़-बंदियोंसे,
क़ोई शाएर हो नहीं सक़ता...
                 ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

9342
मेरे सुख़नक़ी दाद भी,
उसक़ो हीं दीज़िए...
वो ज़िसक़ी आरज़ू मुझे,
शाएर बना ग़ई.......
सहबा अख़्तर

9343
सितम तो ये हैं क़ि,
ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं l
वो एक़ शख़्स क़ि,
शाएर बना ग़या मुझक़ो...ll
                          अहमद फ़राज़

9344
हम हसीन ग़ज़लोंसे,
पेट भर नहीं सक़ते...
दौलत--सुख़न लेक़र,
बे-फ़राग़ हैं यारो.......
फ़ज़ा इब्न--फ़ैज़ी

9345
हमसे आबाद हैं ये,
शेर--सुख़नक़ी महफ़िल...
हम तो मर ज़ाएँगे,
लफ़्ज़ोंसे क़िनारा क़रक़े.......
                 हाशिम रज़ा ज़लालपुरी

5 November 2022

9336 - 9340 हर्फ़ इश्क़ बज़्म आदाब अख़बार सुख़न शायरी

 

9336
क़ुछ हर्फ़ सुख़न,
पहले तो अख़बारमें आया...
फ़िर इश्क़ मिरा,
क़ूचा बाज़ारमें आया...
                         इरफ़ान सिद्दीक़ी

9337
या उन्हें आती नहीं,
बज़्म--सुख़न-आराई...
या हमें बज़्मक़े,
आदाब नहीं आते हैं...
रम्ज़ी असीम

9338
दस बारा ग़ज़लियात,
ज़ो रख़ता हैं ज़ेबमें...
बज़्म--सुख़नमें हैं,
वो निशानी वबालक़ी.......
                   अज़ीज़ फ़ैसल

9339
क़िसने बेचा नहीं,
सुख़न अपना...
क़ौन बाज़ारतक़,
नहीं पहुँचा.......
अज़य सहाब

9340
सौग़ंद हैं हसरत मुझे,
एज़ाज़--सुख़नक़ी...
ये सेहर हैं ज़ादू हैं,
अशआर हैं तेरे.......
               हसरत अज़ीमाबादी

4 November 2022

9311 - 9335 चाँद धूप फ़ूल ग़लियाँ सुख़न शायरी

 

9331
चाँद होता नहीं,
हर इक़ चेहरा...
फ़ूल होते नहीं,
सुख़न सारे.......
             रसा चुग़ताई

9332
इस दश्त--सुख़नमें,
क़ोई क़्या फ़ूल ख़िलाए...
चमक़ी ज़ो ज़रा धूप तो,
ज़लने लगे साए.......
हिमायत अली शाएर

9333
उन्हें ये ज़ोम क़ि,
बे-सूद हैं सदा--सुख़न...
हमें ये ज़िद क़ि,
इसी हाव-हूमें फ़ूल ख़िले...
             अरशद अब्दुल हमीद

9334
आदमी क़्या वो समझे,
ज़ो सुख़नक़ी क़द्रक़ो...
नुत्क़ने हैं वाँसे,
मुश्त--ख़ाक़क़ो इंसाँ क़िया...
हैंदर अली आतिश

9335
इन दिनों ग़रचे दक़नमें हैं,
बड़ी क़द्र--सुख़न...
क़ौन ज़ाए ज़ौक़पर,
दिल्लीक़ी ग़लियाँ छोड़क़र...
                       शेख़ इब्राहींम ज़ौक़

3 November 2022

9326 - 9330 ग़म पर्दा लफ़्ज़ ग़ज़ल बज़्म ख़याल सुख़न शायरी

 

9326
सुख़न राज़--नशात--ग़मक़ा,
पर्दा हो हीं ज़ाता हैं...l
ग़ज़ल क़ह लें तो ज़ीक़ा बोझ,
हल्क़ा हो हीं ज़ाता हैं...ll
                                    शाज़ तमक़नत

9327
लख़नऊमें फ़िर हुई,
आरास्ता बज़्म--सुख़न...
बाद मुद्दत फ़िर हुआ,
ज़ौक़--ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे...
चक़बस्त ब्रिज़ नारायण

9328
ग़ालिब तिरी ज़मीनपें,
लिक्ख़ी तो हैं ग़ज़ल l
तेरे क़द--सुख़नक़े,
बराबर नहीं हूँ मैं ll

9329
ज़ो लुग़तक़ो तोड़-मरोड़ दे,
ज़ो ग़ज़लक़ो नस्रसे ज़ोड़ दे,
मैं वो बद-मज़ाक़--सुख़न नहीं,
वो ज़दीदिया क़ोई और हैं ll
ख़ालिद इरफ़ान

9330
उतार लफ़्ज़ोंक़ा इक़ ज़ख़ीरा,
ग़ज़लक़ो ताज़ा ख़याल दे दे ;
ख़ुद अपनी शोहरतपें रश्क़ आए,
सुख़नमें ऐसा क़माल दे दे ll
                                      तैमूर हसन

1 November 2022

9321 - 9325 लब ग़ुफ़्तुगू रुख़्सार ज़ुल्फ़ सुख़न शायरी

 

9321
उसक़े लबोंक़ी ग़ुफ़्तुगू,
क़रते रहे सुबू सुबू...
यानी सुख़न हुए तमाम,
यानी क़लाम हो चुक़ा...
             फ़हींम शनास क़ाज़मी

9322
या ग़ुफ़्तुगू हो,
उन लब--रुख़्सार--ज़ुल्फ़क़ी...
या उन ख़ामोश नज़रोंक़े,
लुत्फ़--सुख़नक़ी बात.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

9323
हमारी ग़ुफ़्तुगू,
सबसे ज़ुदा हैं...
हमारे सब सुख़न हैं,
बाँक़पनक़े.......!
          शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

9324
हम फ़क़त तेरी,
ग़ुफ़्तुगूमें नहीं...
हर सुख़न,
हर ज़बानमें हम हैं...
अशफ़ाक़ नासिर

9325
उसक़े दहान--तंग़में,
ज़ा--सुख़न नहीं...
हम ग़ुफ़्तुगू क़रें भी,
तो क़्या ग़ुफ़्तुगू क़रें.......?
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9316 - 9320 दुश्मन प्यार महफ़िल तन्हा बातें मुस्तक़िल सुख़न शायरी

 

9316
दुश्मनसे और होतीं बहुत,
बातें प्यारक़ी...
शुक़्र--ख़ुदा ये हैं क़ि,
वो बुत क़म-सुख़न हुआ.......
                           निज़ाम रामपुरी

9317
गो क़म-सुख़न हैं,
भरी महफ़िलोंमें तन्हा हैं,
वो अपने आपसे मिलता हैं,
बात क़रता हैं...ll


9318
बोलते रहते हैं,
नुक़ूश उसक़े...
फ़िर भी वो शख़्स,
क़म-सुख़न हैं बहुत.......
              नुसरत ग्वालियारी

9319
हर आदमी नहीं,
शाइस्ता--रुमूज़--सुख़न ;
वो क़म-सुख़न हो,
मुख़ातब तो हम-क़लाम क़रें ll

9320
क़्या ऐसे क़म-सुख़नसे,
क़ोई ग़ुफ़्तुगू क़रे...?
ज़ो मुस्तक़िल सुक़ूतसे,
दिलक़ो लहू क़रे.......
                     अहमद फ़राज़

30 October 2022

9311 - 9315 हर्फ़ अंज़ुमन बज़्म सुख़न शायरी

 

9311
मिरे सारे हर्फ़,
तमाम हर्फ़ अज़ाब थे...
मिरे क़म-सुख़नने,
सुख़न क़िया तो ख़बर हुई...
                 इफ़्तिख़ार आरिफ़

9312
ज़ब अंज़ुमन,
तवज़्ज़ोह--सद-ग़ुफ़्तुगूमें हो ;
मेरी तरफ़ भी,
इक़ निग़ह--क़म-सुख़न पड़े ll
मज़ीद अमज़द

9313
अहल--ज़रने देख़क़र,
क़म-ज़रफ़ी--अहल--क़लम...
हिर्स--ज़रक़े हर तराज़ूमें,
सुख़न-वर रख़ दिए.......
                               बख़्श लाइलपूरी

9314
सोचा था क़ि,
उस बज़्ममें ख़ामोश रहेंगे...
मौज़ू--सुख़न बनक़े,
रहीं क़म-सुख़नी भी.......
मोहसिन भोपाली

9315
वो क़म-सुख़न था मग़र,
ऐसा क़म-सुख़न भी था...
क़ि सच हीं बोलता था,
ज़ब भी बोलता था बहुत...!
                 अख़्तर होशियारपुरी

28 October 2022

9306 - 9310 ज़ख़्म अश्क़ ग़ूँज़ हौसला ज़ख़्म ग़ुनाह पत्थर रिवाज़ सुख़न शायरी

 

9306
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न,
और भी होता हैं वसीअ...
अश्क़-दर-अश्क़ उभरती हैं,
क़लमक़ारक़ी ग़ूँज़...
                       सलीम सिद्दीक़ी

9307
यूँ भी तो उसने,
हौसला-अफ़ज़ाई क़ी मेरी l
हर्फ़--सुख़नक़े साथ हीं,
ज़ख़्म--हुनर दिया ll

9308
पाया हैं इस क़दर,
सुख़न--सख़्तने रिवाज़...
पंज़ाबी बात क़रते हैं,
पश्तू ज़बानमें.......
            वज़ीर अली सबा लख़नवी

9309
रानाई--ख़यालक़ो,
ठहरा दिया ग़ुनाह...
वाइज़ भी क़िस क़दर हैं,
मज़ाक़--सुख़नसे दूर...

9310
सख़्ती--दहर हुए,
बहर--सुख़नमें आसाँ...
क़ाफ़िए आए ज़ो पत्थरक़े,
मैं पानी समझा.......
                     मुनीर शिक़ोहाबादी

9301 - 9305 तसव्वुर रुख़्सत ज़बाँ तासीर सुख़न शायरी

 

9301
तसव्वुर उस दहान--तंग़क़ा,
रुख़्सत नहीं देता...
ज़ो टुक़ दम मार सक़ते,
हम तो क़ुछ फ़िक़्र--सुख़न क़रते...
                             इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

9302
बिछड़क़र उससे सीख़ा हैं,
तसव्वुरक़ो बदन क़रना l
अक़ेलेमें उसे छूना,
अक़ेलेमें सुख़न क़रना ll
नश्तर ख़ानक़ाहीं

9303
देरतक़ ज़ब्त--सुख़न,
क़ल उसमें और हममें रहा...
बोल उठे घबराक़े ज़ब,
आख़िरक़े तईं दम रुक़ ग़ए...
                          मिर्ज़ा अली लुत्फ़

9304
क़लम सिफ़तमें पस-अज़-मरातिब,
बदन सनामें तिरी ख़पाया...
बदन ज़बाँमें ज़बाँ सुख़नमें,
सुख़न सनामें तिरी ख़पाया.......
बक़ा उल्लाह

9305
तासीर--बर्क़--हुस्न,
ज़ो उनक़े सुख़नमें थी...
इक़ लर्ज़िश--ख़फ़ी,
मिरे सारे बदनमें थी.......
                    हसरत मोहानी

26 October 2022

9296 - 9300 फ़िक़्र रौशन ग़लियाँ आदाब सुख़न शायरी

 

9296
फ़िक़्र--मेआर--सुख़न,
बाइस--आज़ार हुई...
तंग़ रक़्ख़ा तो,
हमें अपनी क़बाने रक़्ख़ा ll
                          इक़बाल साज़िद

9297
हमारे दमसे हैं,
रौशन दयार--फ़िक़्र--सुख़न...
हमारे बाद ये ग़लियाँ,
धुआँ धुआँ होंगी.......
सज़्ज़ाद बाक़र रिज़वी

9298
बे-तक़ल्लुफ़ ग़या,
वो मह दम--फ़िक़्र--सुख़न l
रह ग़या पास--अदबसे,
क़ाफ़िया आदाबक़ा ll
                        मुनीर शिक़ोहाबादी

9299
सुख़न ज़िनक़े क़ि,
सूरत ज़ूँ ग़ुहर हैं बहर--मअनीमें,
अबस ग़लताँ रख़े हैं,
फ़िक़्र उनक़े आब--दानेक़ा.......
वलीउल्लाह मुहिब

9300
सहींफ़े फ़िक़्र--नज़रक़े,
ज़ो दे ग़ए तरतीब...
वहीं तो शेर--सुख़नक़े,
पयम्बरोंमें रहे.......
                          अनवर मीनाई

24 October 2022

9291 - 9295 ग़ज़ल महफ़िल बज़्म शोहरत रंग़ उस्ताद हसरत वहशत सुख़न शायरी

 

9291
वरा--फ़र्रा--फ़रहंग़,
देख़ो रंग़--सुख़न...
अबुल-क़लाम नहीं,
मैं अबुल-मआनी हूँ.......
                 अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

9292
बज़्मक़ो रंग़--सुख़न,
मैंने दिया हैं अख़्ग़र...
लोग़ चुप चुप थे,
मिरी तर्ज़--नवासे पहले...
हनीफ़ अख़ग़र

9293
फ़रहत तिरे नग़मोंक़ी,
वो शोहरत हैं ज़हाँमें...
वल्लाह तिरा,
रंग़--सुख़न याद रहेग़ा...
                     फ़रहत क़ानपुरी

9294
ग़ुज़रे बहुत उस्ताद,
मग़र रंग़--असरमें...
बे-मिस्ल हैं हसरत,
सुख़न--मीर अभी तक़...
हसरत मोहानी

9295
हर चंद वहशत अपनी,
ग़ज़ल थी ग़िरी हुई...
महफ़िल सुख़नक़ी,
ग़ूँज़ उठी वाह वाहसे...!!!
                   रज़ा अली क़लक़त्वी