9366
मैं सुख़नमें हूँ,
उस ज़ग़ह क़ि ज़हाँ...
साँस लेना भी,
शाइरी हैं मुझे.......!
तहज़ीब हाफ़ी
9367याँ लबपें लाख़ लाख़,सुख़न इज़्तिराबमें...वाँ एक़ ख़ामुशी,तिरी सबक़े ज़वाबमें...शेख़ इब्राहींम ज़ौक़
9368
मैं भला क़ब था,
सुख़न-ग़ोईपें माइल ग़ालिब ;
शेरने क़ी ये तमन्ना,
क़े बने फ़न मेरा.......ll
मिर्ज़ा ग़ालिब
9369वो क़ूचा शेर-ओ-सुख़नक़ा हैं,तंग़-ओ-तार ऐ बहर...क़ि सूझते नहीं मानी,बड़े ज़हींनोंक़ो.......इमदाद अली बहर
9370
क़लक़ ग़ज़लें पढ़ेंगे,
ज़ा-ए-क़ुरआँ सब पस-ए-मुर्दन...
हमारी क़ब्रपर ज़ब,
मज़मा-ए-अहल-ए-सुख़न होग़ा...
असद अली ख़ान क़लक़