4 August 2020

6276 - 6280 मोहब्बत इश्क अश्क चीनी जिंदगी ज़हर शिकवा शायरी


6276
जाने कौन सी आबे-हयात,
पी के जन्मी हैं ये मोहब्बत...
मर गये कितने हीर और रांझे,
मगर आज तक ज़िन्दा हैं ये मोहब्बत...!

6277
जिस कपमें तुमने,
एक रोज़ चाय पी थी !
उस कपमें मैं आज भी,
चीनी नहीं मिलाता !!!

6278
ज़रासी मोहब्बत क्या पी ली,
जिंदगी अबतक लड़खड़ा रही हैं.......

6279
इश्कको समझने के लिए,
उसे मीरासा होना पड़ेगा...
कभी अश्क छुपाने पड़ेंगे,
कभी ज़हर पीना पड़ेगा.......

6280
कड़वा हैं, फीका हैं,
शिकवा क्या कीजिए...
जीवन समझौता हैं,
घूँट घूँट पीजीए.......

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