6326
हम ख़ूनकी क़िस्तें तो,
कई दे चुके लेकिन...
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़,
अदा क्यूँ नहीं होता...?
6327
किसे हैं फ़िक्रे
वतन,
आज यहाँ पर...
हर कोई अपने
आप के लिए,
फ़िक्रमन्द
हैं यहाँ.......
6328
ऐ सनम तेरे हिज्रमें,
ना सफरके रहे ना वतनके...
गिरे टूकड़े दिलके कहीं,
ना कफनके रहे ना दफनके...!
6329
वतनसे इश्क़ ग़रीबीसे बैर
अमनसे प्यार,
सभीने ओढ़ रखे
हैं नक़ाब जितने
हैं;
समझ सके तो
समझ ज़िन्दगीकी उलझनको,
सवाल उतने नहीं
हैं जवाब जितने
हैं.......
जाँनिसार
अख़्तर
मेरे दिलकी हालत भी,
मेरे वतन जैसी हैं...
जिसको दी हुकुमत,
उसीने बर्बाद किया.......
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