6266
अज़ाँ हो रही हैं,
पिला जल्द साक़ी l
इबादत करें आज,
मख़मूर होकर ll
6267
अक्ल क्या चीज़
हैं एक वज़ाकी
पाबन्दी हैं,
दिलको मुद्दत हुई इस
कैदसे आज़ाद किया;
नशा पिलाके गिराना तो
सबको आता हैं,
मज़ा तो जब
हैं कि गिरतोंको
थाम ले साकी ll
ग़ालिब
6268
वो मिले भी तो,
इक झिझकसी रही...
काश थोड़ीसी,
हम पिए होते.......!
अब्दुल हमीद अदम
6269
ज़बान-ए-होशसे
ये कुफ़्र,
सरज़द हो नहीं
सकता...
मैं कैसे बिन
पिए ले लूँ,
ख़ुदाका
नाम ऐ साक़ी...!
अब्दुल हमीद अदम
6270
ख़ुश्क बातोंमें कहाँ हैं,
शैख़ कैफ़-ए-ज़िंदगी...
वो तो पीकर ही मिलेगा,
जो मज़ा पीनेमें हैं.......!
अर्श मलसियानी
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