8 August 2020

6296 - 6300 दिल ज़िन्दगी तूफां हमसफ़र मोहब्बत गम तन्हा आँख ख़्वाब वहम शायरी

 

6296
भूल जाना और भुला देना,
फ़क़त एक वहम हैं...
दिलोंसे कब निकलते हैं वो लोग,
मोहब्बत जिनसे हो जाए...!

6297
क्या जाने उसे वहम हैं,
क्या मेरी तरफ़से...
जो ख़्वाबमें भी रातको,
तन्हा नहीं आता.....
शेख़ इब्राहीम ज़ौक

6298
राहे ज़िन्दगीमें,
यह कहानी सभी की हैं;
हमराज़ कोई और हैं,
हमसफ़र कोई और हैं...

6299
आदमीको सिर्फ वहम हैं,
पास उसके ही इतना गम हैं !
पूछो हंसते हुए चेहरोंसे,
आँख भीतरसे कितनी नम हैं...!

6300
वहम था कि सारा बाग अपना हैं,
तूफांके बाद पता चला...
सूखे पत्तोंपर भी,
हक हवाओंका था.......

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