6 August 2020

6286 - 6290 दिल जान याद एहसास हिचकियाँ नेकियाँ तबाह बेगुनाही मुकर्रर गवाह शायरी


6286
मेरी हिचकियाँ गवाह हैं...
नींद उनकी भी तबाह हैं...!

6287
कुछ नेकियाँ,
ऐसी भी होनी चाहिए...
जिसका खुदके सिवा,
कोई गवाह ना हो.......!

6288
फ़क़त एक चाँद ही गवाह था,
मेरी बेगुनाहीका...
और अदालतने पेशी,
अमावसकी रात मुकर्रर कर दी...

6289
कैसे लड़ूँ मुक़दमा खुदसे,
उसकी यादोंका.......
ये दिल भी वकील उसका !
ये जान भी गवाह उसकी !!!

6290
गवाह मिलते हैं,
लाशें मिलतीं हैं;
इसलिये लोग बेख़ौफ,
एहसासोंका कत्ल करते हैं...

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