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मेरी हिचकियाँ गवाह हैं...
नींद उनकी भी तबाह हैं...!
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कुछ नेकियाँ,
ऐसी भी होनी
चाहिए...
जिसका खुदके सिवा,
कोई गवाह ना
हो.......!
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फ़क़त एक चाँद ही गवाह था,
मेरी बेगुनाहीका...
और अदालतने पेशी,
अमावसकी रात मुकर्रर कर दी...
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कैसे लड़ूँ मुक़दमा
खुदसे,
उसकी यादोंका.......
ये दिल भी
वकील उसका !
ये जान भी
गवाह उसकी !!!
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न गवाह मिलते हैं,
न लाशें मिलतीं हैं;
इसलिये लोग बेख़ौफ,
एहसासोंका
कत्ल करते हैं...
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