1 August 2020

6261 - 6265 जन्नत शराब तलब शब मय साक़ी शायरी


6261
कहीं सागर लबालब हैं,
कहीं खाली पियाले हैं;
यह कैसा दौर हैं साकी,
यह क्या तकसीम हैं साकी !

6262
ज़ाहिद शराब-ए-नाब हो,
या बादा-ए-तुहूर...
पीने ही पर जब आए,
हराम ओ हलाल क्या...
हफ़ीज़ जौनपुरी

6263
मयकी तौबाको तो,
मुद्दत हुई क़ाएम लेकिन...
बे-तलब अब भी जो मिल जाए,
तो इंकार नहीं.......
                            क़ाएम चाँदपुरी

6264
शबको मय ख़ूबसी पी,
सुब्हको तौबा कर ली l
रिंदके रिंद रहे,
हाथसे जन्नत न गई ll
जलील मानिकपूरी

6265
ज़ौक़ देख,
दुख़्तर--रज़को मुँह लग l
छुटती नहीं हैं मुँहसे ये,
काफ़र लगी हुई.......ll
                         शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

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