6291
मिरे हबीब,
मिरी मुस्कुराहटोंपें न जा;
ख़ुदा-गवाह मुझे,
आज भी तिरा ग़म हैं.......
अहमद राही
6292
मुझे जलानेको,
गैरोंके
नज़दीक जाना तेरा...
गवाही दे गया,
तुझे इश्क़ हैं मुझसे.......
6293
चेहरा खुली किताब हैं,
पढ़ लीजिए जनाब...
हमसे हमारे ज़ख़्मोंकी,
गवाही न मांगिये.......
6294
फ़लक़के चाँद तारे
हैं गवाह,
तेरी नज़रका गुस्ताख़...
सरारा हर एक,
चिलमन जला रहा
हैं.......
6295
ना पेशी होगी,
ना गवाह होगा...
जो भी उलझेगा मोहब्बतसे,
वो सिर्फ तबाह होगा.......
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