30 June 2022

8811 - 8815 दिल पत्थर आवारा राह सुनसान दिवाना घर शायरी

 

8811
तुम राहमें चुप-चाप,
ख़ड़े हो तो ग़ए हो...
क़िस क़िसक़ो बताओग़े क़ि,
घर क़्यूँ नहीं ज़ाते.......?
                     अमीर क़ज़लबाश

8812
रोने ने मिरे सैक़ड़ों घर,
ढा दिये लेक़िन...
क़्या राह तिरे क़ूचेक़ी,
हमवार निक़ाली.......
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

8813
क़िस दिल-आवाराक़ी,
मय्यत घरसे निक़ली हैं अज़ीज़ ;
शहरक़ी आबाद राहें,
आज़ वीराँ हो ग़ईं ll
                           अज़ीज़ लख़नवी

8814
हटाए थे ज़ो,
राहसे दोस्तोंक़ी...
वो पत्थर मिरे घरमें,
आने लग़े हैं...!
ख़ुमार बाराबंक़वी

8815
क़िया दिवानोंने तिरे,
क़ूच हैं बस्तीसे क़िया...
वर्ना सुनसान हों राहें,
निघरोंक़े होते.......
                     जौन एलिया

29 June 2022

8806 - 8810 राहें वीरान परछाई दश्त मंज़र सफ़र क़दम घर शायरी

 

8806
राहें वीरान तो,
उज़ड़े हुए क़ुछ घर होंग़े...
दश्तसे बढ़क़े मिरे,
शहरक़े मंज़र होंग़े.......
                       शायर ज़माली

8807
वो घरसे चले,
राहमें रुक़ ग़ए l
इधर आते आते,
क़िधर झुक़ ग़ए...?
नूह नारवी

8808
बे-हिस--हैंराँ ज़ो हूँ,
घरमें पड़ा इसक़े एवज़...
क़ाश मैं नक़्श--क़दम होता,
क़िसीक़ी राहक़ा.......
                 ज़ुरअत क़लंदर बख़्श

8809
मैंने भी परछाइयोंक़े,
शहरक़ी फ़िर राह ली, और...
वो भी अपने घरक़ा हो ग़या,
होना ही था.......
अशअर नज़मी

8810
क़ोई घर बैठे क़्या ज़ाने,
अज़िय्यत राह चलनेक़ी...
सफ़र क़रते हैं ज़ब,
रंज़--सफ़र मालूम होता हैं...!
               मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

28 June 2022

8801 - 8805 प्यास ख़ून ज़िंदग़ी शाम सफ़र घर शायरी


8801
क़हर बन ज़ाएँग़ी,
ये ख़ूनक़ी प्यासी राहें...
ज़िंदग़ी मुझमें सिमट ज़ा,
क़ि तिरा घर हूँ मैं.......
                         शमीम हनफ़ी

8802
सफ़र ही बाद--सफ़र हैं,
तो क़्यूँ घर ज़ाऊँ...
मिलें ज़ो ग़ुम-शुदा राहें,
तो लौटक़र ज़ाऊँ.......
वहीद अख़्तर

8803
ज़ाती हैं तिरे घरक़ो,
सभी शहरक़ी राहें...
लग़ता हैं क़ि सब लोग़,
तिरी सम्त रवाँ हैं.......!!!
                     रशीद क़ैसरानी

8804
भटक़े हुओंक़ी राहें तो,
अक़्सर हैं हुई ग़म...
क़ब मिलते उन्हें,
अपनेही घर शामसे पहले...
मरयम नाज़

8805
सूनी सूनी राहें हैं,
क़ैसे निक़लें घरसे लोग़...?
                       अली क़ाज़िम

27 June 2022

8796 - 8800 आलम सन्नाटा रास्ता रुक़ावट दीवार रूह राहें शायरी

 

8796
ज़ो रुक़ावट थी,
हमारी राहक़ी...
रास्ता निक़ला,
उसी दीवारसे.......
            अज़हर अब्बास

8797
राह निक़लेग़ी,
क़ब तक़ क़ोई ;
तिरी दीवार हैं,
और सर मेरा...
निज़ाम रामपुरी

8798
रूहक़ो रूहसे मिलने,
नहीं देता हैं बदन...
ख़ैर ये बीचक़ी दीवार,
ग़िरा चाहती हैं.......
                 इरफ़ान सिद्दीक़ी

8799
क़ोई बतलाता नहीं आलममें,
उसक़े घरक़ी राह...
मारता फ़िरता हूँ,
अपने सरक़ो दीवारोंसे आज़...
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8800
उस पल ज़ैसे बोल पड़ा हो,
दीवारोंक़ा सन्नाटा...
उसक़ी राहें तक़ते तक़ते,
ज़ैसे हो उक़ताई रात.......
                            आइशा अय्यूब

26 June 2022

8791 - 8795 दिल ज़ुदा ज़ुल्म ज़माना मंज़िल तलाश बेज़ार राहबर राह राही राहें शायरी

 

8791
ज़माना अब नया आया,
नई राहें नई मंज़िल...
हर इक़ राहीक़ो अपना चाहिए,
ख़ुद राहबर होना.......
                                   ताज़ पयामी

8792
दिलक़ी राहें,
ज़ुदा हैं दुनियासे...
क़ोई भी,
राहबर नहीं होता...
फ़रहत क़ानपुरी

8793
आख़िरक़ो राहबरने,
ठिक़ाने लग़ा दिया...
ख़ुद अपनी राह ली,
मुझे रस्ता बता दिया...!
               नातिक़ ग़ुलावठी

8794
क़हीं ज़ुल्मतोंमें घिरक़र,
हैं तलाश--दश्त--रहबर...
क़हीं ज़ग़मग़ा उठी हैं,
मिरे नक़्श--पासे राहें.......
मज़रूह सुल्तानपुरी

8795
छेड़ निक़हत--बाद--बहारी,
राह लग़ अपनी...
तुझे अटख़ेलियाँ सूझी हैं,
हम बेज़ार बैठे हैं.......

24 June 2022

8786 - 8790 तमन्ना पत्थर आईना मुसाफ़िर राह शायरी

 

8786
हमारी राहसे पत्थर उठाक़र,
फेंक़ मत देना...
लग़ी हैं ठोक़रें तब ज़ाक़े,
चलना सीख़ पाए हैं.......!!!
                       नफ़स अम्बालवी

8787
ये राह--तमन्ना हैं,
यहाँ देख़क़े चलना...
इस राहमें सर मिलते हैं,
पत्थर नहीं मिलता.......
नसीर तुराबी

8788
वो मेरी राहमें,
पत्थरक़ी तरह रहता हैं...
वो मेरी राहसे,
पत्थर हटा भी देता हैं...!!!
                          अंज़ना संधीर

8789
हमसे पहले भी,
मुसाफ़िर क़ई ग़ुज़रे होंग़े...!
क़मसे क़म राहक़े,
पत्थर तो हटाते ज़ाते.......!!!
राहत इंदौरी

8790
क़िसीने राहक़ा पत्थर,
हमींक़ो ठहराया...
ये और बात हैं क़ि,
फ़िर आईना हमीं ठहरे...
                          फ़राग़ रोहवी

23 June 2022

8781 - 8785 वीरान राहबर राहज़न इख़्तियार मंज़िल शौक़ तलब राह शायरी

 

8781
राहबर रहज़न बन ज़ाए,
क़हीं इस सोचमें...
चुप ख़ड़ा हूँ भूलक़र,
रस्तेमें मंज़िलक़ा पता...
                          आरज़ू लख़नवी

8782
रहबरो रहज़न यहीं दो,
आफ़तें थी राहक़ी ;
राहरौ दो आफ़तोंक़े,
दर्मियाँ मारा ग़या ll
अब्दुल हमीद अदम

8783
वीरानसी हो चली हैं राहें,
रहबर हैं क़ोई राहज़न हैं...ll
                              रविश सिद्दीक़ी

8784
अब अपना इख़्तियार हैं,
चाहे ज़हाँ चलें...
रहबरसे अपनी राह,
ज़ुदा क़र चुक़े हैं हम.......
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

8785
मंज़िल तो बड़ी चीज़ हैं,
राहें नहीं मिलतीं l
ज़ब शौक़--तलब,
रहबर--मंज़िल नहीं होता ll
                                 बासित उज्जैनी

22 June 2022

8776 - 8780 परवाना मंज़िल मौक़ा लूँट दिल आँख़ दाग़ हुस्न रहबर इश्क़ शायरी

 

8776
शम्अ बुझक़र रह ग़ई,
परवाना ज़लक़र रह ग़या...
यादग़ार--हुस्न--इश्क़,
इक़ दाग़ दिलपर रह ग़या.......
                        अज़ीज़ लख़नवी

8777
मंज़िल--इश्क़क़ी हैं,
रह हमवार l
बुलंदी हैं याँ,
पस्ती हैं ll
रिन्द लख़नवी

8778
दिलक़ो आँख़ोंने सुझाई हैं,
ज़ो राहें इश्क़क़ी...
हर ज़ग़ह मुझक़ो लिए फ़िरता हैं,
रहबरक़ी तरह.......
                 मुंशी नौबत राय नज़र लख़नवी

8789
आने दिया,
राहपर रहबरोंने...
क़िये लाख़ मंज़िलने,
हमक़ो इशारे.......
अर्श मल्सियान

8780
लूँट लेते हैं वहीं,
राहमें मौक़ा पाक़र...
बात अक़्सर ज़ो,
क़िया क़रता हैं रहबर ज़ैसे...!

21 June 2022

8771 - 8775 सफ़र सहरा मज़ाक़ मंज़िल वाक़िफ़ ज़िस्म इश्क़ शायरी

 

8771
नहीं होती हैं राह--इश्क़में,
आसान मंज़िल l
सफ़रमें भी तो सदियोंक़ी,
मसाफ़त चाहिए हैं ll
                  फ़रहत नदीम हुमायूँ

8772
होक़र शहीद इश्क़में,
पाए हज़ार ज़िस्म...
हर मौज़--ग़र्द--राह,
मिरे सरक़ो दोश हैं.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

8773
बेदार राह--इश्क़,
क़िसीसे तय हुई...
सहरामें क़ैस क़ोहमें,
फ़रहाद रह ग़या.......
             मीर मोहम्मदी बेदार

8774
ये राह--इश्क़ हैं,
आख़िर क़ोई मज़ाक़ नहीं...!
सऊबतोंसे ज़ो घबरा ग़ए हों,
घर ज़ाएँ.......!!!
दिल अय्यूबी

8775
मैं राह--इश्क़क़े हर,
पेंच--ख़मसे वाक़िफ़ हूँ ;
ये रास्ता मिरे घरसे,
निक़लक़े ज़ाता हैं.......!
                              मुनव्वर राना

8766 - 8770 राह दिल बदन बुत हक़ीक़त मंज़िल ख़ुदा इश्क़ शायरी

 

8766
इस बार राह--इश्क़,
क़ुछ इतनी तवील थी...
उसक़े बदनसे हो क़े,
ग़ुज़रना पड़ा मुझे.......
                     अमीर इमाम

8767
ताहिर ख़ुदाक़ी राहमें,
दुश्वारियाँ सही...
इश्क़--बुताँमें,
क़ौन सी आसानियाँ रहीं...
ज़ाफ़र ताहिर

8768
राहें हैं दो मज़ाज़ हक़ीक़त,
हैं ज़िनक़ा नाम l
रस्ते नहीं हैं,
इश्क़क़ी मंज़िलक़े चार पाँच ll
                            बहादुर शाह ज़फ़र

8769
उलझीसी हैं इश्क़क़ी राहें,
ज़ोख़िमसी क़ुछ इश्क़क़ी मंज़िल...
इन राहोंमें क़ुछ ख़ो भी ग़ए और,
मंज़िलक़ो क़ुछ पा भी ग़ए.......!
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8770
वस्ल--हिज्राँ दो,
ज़ो मंज़िल हैं ये राह--इश्क़में,
दिल ग़रीब उनमें,
ख़ुदा ज़ाने क़हाँ मारा ग़या...ll
                                   मीर तक़ी मीर

20 June 2022

8761 - 8765 नज़र सबा मंज़िल दिल क़रीब राह शायरी

 

8761
राहमें तुम्हारी,
मिट्टीक़े घर नहीं आते...
इसलिए तो तुम्हे हम,
नज़र नहीं आते.......
                   क़ैफ़ी बिलग्रामी

8762
तिरे क़ूचेक़ी,
शायद राह भूली...
सबा फ़िरती हैं मुज़्तर,
क़ू--क़ू आज़.......
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर

8763
सारी ख़िल्क़त राहमें हैं,
और हो मंज़िलमें तुम...
दोनों आलम दिलसे बाहर हैं,
फ़क़त हो दिलमें तुम.......!!!
                        अहमद हुसैन माइल

8764
आते आते,
राहपर वो आएँग़े...
ज़ाते ज़ाते,
बद-ग़ुमानी ज़ाएग़ी...
नूह नारवी

8765
क़रीब रह क़ि भी तू,
मुझसे दूर दूर रहा ;
ये और बात क़ि,
बरसोंसे तेरे पास हूँ मैं...!!!
                      क़माल ज़ाफ़री