4256
नींद आनेकी,
दवाईयाँ हजार हैं...
ना आनेके
लिए,
इश्क़ काफी हैं...!
4257
इश्क़ न हुआ,
कोहरा हो जैसे;
तुम्हारे
सिवा,
कुछ दिखता
ही नहीं...
4258
यहीं इश्क़ हैं शायद...
नज़दीक नहीं तुम
मेरे...
पर मैं तुमसे दूर नहीं...
4259
खुदा तु भी
कारीगर निकला...
खीच दी दो-तीन लकीरें हाथों मे...
और ये नादान
इंसान उसे,
तकदीर समझ बैठा.......!
4260
हाथकी लकीरें
सिर्फ,
सजावट बयाँ करती
हैं...
किस्मत अगर मालूम
होती,
तो
मेहनत कौन करता.......!