5491
अब मत खोलना,
मेरी जिंदगीकी पुरानी किताबोंको...
जो था वो
मैं रहा नहीं,
जो हूँ वो
किसी को पता
नहीं...!
5492
बंद लिफाफेमें,
रखी चिठ्ठीसी हैं ये
जिंदगी...
पता नहीं अगलेही
पल,
कौनसा पैगाम ले आये...
5493
पता नही कब जाएगी,
तेरी लापरवाहीकी आदत;
पगली, कुछ तो सम्भालकर रखती...
पगली, कुछ तो सम्भालकर रखती...
मुझे भी खो दिया.......!
5494
पता नहीं क्या
रिश्ता था,
टहनीसे उस पंछीका...
उसके उड़ जाने
पर वो,
कितनी देर कांपती
रही...
5495
दिल तो बेशक,
उनके हवाले किया मैंने।
मेरे मनको कब
अपना आशियाँ बनाया,
ये हमें पता
नहीं।
गुनाह तो बेशक
किया था उन्होंने,
हमें सतानेका।
पर बेगुनाह कब उन्हें
दिलने बनाया,
ये हमें पता
नहीं।।