1 November 2022

9316 - 9320 दुश्मन प्यार महफ़िल तन्हा बातें मुस्तक़िल सुख़न शायरी

 

9316
दुश्मनसे और होतीं बहुत,
बातें प्यारक़ी...
शुक़्र--ख़ुदा ये हैं क़ि,
वो बुत क़म-सुख़न हुआ.......
                           निज़ाम रामपुरी

9317
गो क़म-सुख़न हैं,
भरी महफ़िलोंमें तन्हा हैं,
वो अपने आपसे मिलता हैं,
बात क़रता हैं...ll


9318
बोलते रहते हैं,
नुक़ूश उसक़े...
फ़िर भी वो शख़्स,
क़म-सुख़न हैं बहुत.......
              नुसरत ग्वालियारी

9319
हर आदमी नहीं,
शाइस्ता--रुमूज़--सुख़न ;
वो क़म-सुख़न हो,
मुख़ातब तो हम-क़लाम क़रें ll

9320
क़्या ऐसे क़म-सुख़नसे,
क़ोई ग़ुफ़्तुगू क़रे...?
ज़ो मुस्तक़िल सुक़ूतसे,
दिलक़ो लहू क़रे.......
                     अहमद फ़राज़

30 October 2022

9311 - 9315 हर्फ़ अंज़ुमन बज़्म सुख़न शायरी

 

9311
मिरे सारे हर्फ़,
तमाम हर्फ़ अज़ाब थे...
मिरे क़म-सुख़नने,
सुख़न क़िया तो ख़बर हुई...
                 इफ़्तिख़ार आरिफ़

9312
ज़ब अंज़ुमन,
तवज़्ज़ोह--सद-ग़ुफ़्तुगूमें हो ;
मेरी तरफ़ भी,
इक़ निग़ह--क़म-सुख़न पड़े ll
मज़ीद अमज़द

9313
अहल--ज़रने देख़क़र,
क़म-ज़रफ़ी--अहल--क़लम...
हिर्स--ज़रक़े हर तराज़ूमें,
सुख़न-वर रख़ दिए.......
                               बख़्श लाइलपूरी

9314
सोचा था क़ि,
उस बज़्ममें ख़ामोश रहेंगे...
मौज़ू--सुख़न बनक़े,
रहीं क़म-सुख़नी भी.......
मोहसिन भोपाली

9315
वो क़म-सुख़न था मग़र,
ऐसा क़म-सुख़न भी था...
क़ि सच हीं बोलता था,
ज़ब भी बोलता था बहुत...!
                 अख़्तर होशियारपुरी

28 October 2022

9306 - 9310 ज़ख़्म अश्क़ ग़ूँज़ हौसला ज़ख़्म ग़ुनाह पत्थर रिवाज़ सुख़न शायरी

 

9306
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न,
और भी होता हैं वसीअ...
अश्क़-दर-अश्क़ उभरती हैं,
क़लमक़ारक़ी ग़ूँज़...
                       सलीम सिद्दीक़ी

9307
यूँ भी तो उसने,
हौसला-अफ़ज़ाई क़ी मेरी l
हर्फ़--सुख़नक़े साथ हीं,
ज़ख़्म--हुनर दिया ll

9308
पाया हैं इस क़दर,
सुख़न--सख़्तने रिवाज़...
पंज़ाबी बात क़रते हैं,
पश्तू ज़बानमें.......
            वज़ीर अली सबा लख़नवी

9309
रानाई--ख़यालक़ो,
ठहरा दिया ग़ुनाह...
वाइज़ भी क़िस क़दर हैं,
मज़ाक़--सुख़नसे दूर...

9310
सख़्ती--दहर हुए,
बहर--सुख़नमें आसाँ...
क़ाफ़िए आए ज़ो पत्थरक़े,
मैं पानी समझा.......
                     मुनीर शिक़ोहाबादी

9301 - 9305 तसव्वुर रुख़्सत ज़बाँ तासीर सुख़न शायरी

 

9301
तसव्वुर उस दहान--तंग़क़ा,
रुख़्सत नहीं देता...
ज़ो टुक़ दम मार सक़ते,
हम तो क़ुछ फ़िक़्र--सुख़न क़रते...
                             इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

9302
बिछड़क़र उससे सीख़ा हैं,
तसव्वुरक़ो बदन क़रना l
अक़ेलेमें उसे छूना,
अक़ेलेमें सुख़न क़रना ll
नश्तर ख़ानक़ाहीं

9303
देरतक़ ज़ब्त--सुख़न,
क़ल उसमें और हममें रहा...
बोल उठे घबराक़े ज़ब,
आख़िरक़े तईं दम रुक़ ग़ए...
                          मिर्ज़ा अली लुत्फ़

9304
क़लम सिफ़तमें पस-अज़-मरातिब,
बदन सनामें तिरी ख़पाया...
बदन ज़बाँमें ज़बाँ सुख़नमें,
सुख़न सनामें तिरी ख़पाया.......
बक़ा उल्लाह

9305
तासीर--बर्क़--हुस्न,
ज़ो उनक़े सुख़नमें थी...
इक़ लर्ज़िश--ख़फ़ी,
मिरे सारे बदनमें थी.......
                    हसरत मोहानी

26 October 2022

9296 - 9300 फ़िक़्र रौशन ग़लियाँ आदाब सुख़न शायरी

 

9296
फ़िक़्र--मेआर--सुख़न,
बाइस--आज़ार हुई...
तंग़ रक़्ख़ा तो,
हमें अपनी क़बाने रक़्ख़ा ll
                          इक़बाल साज़िद

9297
हमारे दमसे हैं,
रौशन दयार--फ़िक़्र--सुख़न...
हमारे बाद ये ग़लियाँ,
धुआँ धुआँ होंगी.......
सज़्ज़ाद बाक़र रिज़वी

9298
बे-तक़ल्लुफ़ ग़या,
वो मह दम--फ़िक़्र--सुख़न l
रह ग़या पास--अदबसे,
क़ाफ़िया आदाबक़ा ll
                        मुनीर शिक़ोहाबादी

9299
सुख़न ज़िनक़े क़ि,
सूरत ज़ूँ ग़ुहर हैं बहर--मअनीमें,
अबस ग़लताँ रख़े हैं,
फ़िक़्र उनक़े आब--दानेक़ा.......
वलीउल्लाह मुहिब

9300
सहींफ़े फ़िक़्र--नज़रक़े,
ज़ो दे ग़ए तरतीब...
वहीं तो शेर--सुख़नक़े,
पयम्बरोंमें रहे.......
                          अनवर मीनाई

24 October 2022

9291 - 9295 ग़ज़ल महफ़िल बज़्म शोहरत रंग़ उस्ताद हसरत वहशत सुख़न शायरी

 

9291
वरा--फ़र्रा--फ़रहंग़,
देख़ो रंग़--सुख़न...
अबुल-क़लाम नहीं,
मैं अबुल-मआनी हूँ.......
                 अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

9292
बज़्मक़ो रंग़--सुख़न,
मैंने दिया हैं अख़्ग़र...
लोग़ चुप चुप थे,
मिरी तर्ज़--नवासे पहले...
हनीफ़ अख़ग़र

9293
फ़रहत तिरे नग़मोंक़ी,
वो शोहरत हैं ज़हाँमें...
वल्लाह तिरा,
रंग़--सुख़न याद रहेग़ा...
                     फ़रहत क़ानपुरी

9294
ग़ुज़रे बहुत उस्ताद,
मग़र रंग़--असरमें...
बे-मिस्ल हैं हसरत,
सुख़न--मीर अभी तक़...
हसरत मोहानी

9295
हर चंद वहशत अपनी,
ग़ज़ल थी ग़िरी हुई...
महफ़िल सुख़नक़ी,
ग़ूँज़ उठी वाह वाहसे...!!!
                   रज़ा अली क़लक़त्वी

9286 - 9290 नाज़ बात दिल उदास शरीक़ सुख़न शायरी

 

9286
नाज़ उधर दिलक़ो,
उड़ा लेनेक़ी घातोंमें रहा...
मैं इधर चश्म--सुख़न-ग़ो,
तिरी बातोंमें रहा.......
                          नातिक़ ग़ुलावठी

9287
सुख़न--सख़्तसे,
दिल पहले ही तुम तोड़ चुक़े...l
अब अग़र बात बनाओ भी,
तो क़्या होता हैं.......?
लाला माधव राम ज़ौहर

9288
मश्क़--सुख़नमें,
दिल भी हमेशासे हैं शरीक़ l
लेक़िन हैं इसमें,
क़ाम ज़ियादा दिमाग़क़ा ll
                                    एज़ाज़ ग़ुल

9289
अहल--दिलक़े,
दरमियाँ थे मीर तुम...
अब सुख़न हैं,
शोबदा-क़ारोंक़े बीच...!
उबैदुल्लाह अलीम

9290
क़्या क़ोई दिल लग़ाक़े,
क़हे शेर क़लक़...
नाक़द्री--सुख़नसे हैं,
अहल--सुख़न उदास.......
                   असद अली ख़ान क़लक़

22 October 2022

9281 - 9285 दिल बात वहशत ख़याल आतिश सुख़न शायरी

 

9281
मैं क़िसीसे अपने दिलक़ी,
बात क़ह सक़ता था...
अब सुख़नक़ी आड़में,
क़्या क़ुछ क़हना ग़या...!
                            अख़्तर अंसारी

9282
आतिशक़ा शेर पढ़ता हूँ,
अक़्सर -हस्ब--हाल...
दिल सैद हैं,
वो बहर--सुख़नक़े नहंग़क़ा...
मातम फ़ज़ल मोहम्मद

9283
हैं फ़हम उसक़ा,
ज़ो हर इंसानक़े दिलक़ी ज़बाँ समझे l
सुख़न वो हैं ज़िसे,
हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे ll
                          ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

9284
छुपा ग़ोशा-नशीनीसे,
राज़--दिल वहशत...
क़ि ज़ानता हैं ज़माना,
मिरे सुख़नसे मुझे.......
वहशत रज़ा अली क़लक़त्वी

9285
फ़िक़्र--सुख़न,
तलाश--मआश ख़याल--यार;
ग़म क़म हुआ तो हाँ,
दिल--बे-ग़मसे होवेग़ा ll
                          मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9276 - 9280 हिज्र वस्ल रियाज़ ख़त्म वुसअत शायरी

 

9276
वुसअत--ज़ातमें,
ग़ुम वहदत--क़सरत रियाज़...
ज़ो बयाबाँ हैं,
वो ज़र्रे हैं बयाबानोंक़े.......
                                  रियाज़ ख़ैराबादी

9277
वुसअत--सई--क़रम,
देख़ क़ि सर-ता-सर--ख़ाक़...
ग़ुज़रे हैं आबला-पा,
अब्र--ग़ुहर-बार हुनूज़.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

9278
वुसअत--चश्मक़ो,
अंदोह--बसारत लिख्ख़ा...
मैंने इक़ वस्लक़ो,
इक़ हिज्रक़ी हालत लिख्ख़ा ll
                                  अज़्म बहज़ाद

9279
बरी बेज़ार हिन ज़ातों सिफ़ातों,
अज़ब मशरब ते मिल्लत हैं,
सभों वुसअत क़िल्लत हैं ll
ख़्वाज़ा ग़ुलाम फ़रीद

9280
एक़ पलमें ख़त्म हो सक़ती हैं,
वुसअत दहरक़ी...
चोटियोंसे चोटियों तक़ रास्ता ll
                                  शहज़ाद अहमद

20 October 2022

9271 - 9275 लम्हा ज़ल्वा सहरा आसमाँ ज़मीं क़दम वुसअत शायरी

 

9271
लम्हा लम्हा,
वुसअत--क़ौन--मक़ाँक़ी सैर क़ी...
ग़या सो ख़ूब मैंने,
ख़ाक़-दाँक़ी सैर क़ी.......
                            दिलावर अली आज़र

9272
वुसअत--क़ौन--मक़ाँमें,
वो समाते भी नहीं ;
ज़ल्वा-अफ़रोज़ भी हैं,
सामने आते भी नहीं.......!
शायर फतहपुरी

9273
क़हूँ क़्या वहशत--वीरान,
पैमाई क़हाँ तक़ हैं...
क़ि वुसअत मेरे सहराक़ी,
मक़ाँसे ला-मक़ाँ तक़ हैं.......
                            वली वारिसी

9274
आसमाँ और ज़मींक़ी,
वुसअत देख़...
मैं इधर भी हूँ,
और उधर भी हूँ.......!!!
तहज़ीब हाफ़ी

9275
इस तंग़-ना--दहरसे,
बाहर क़दमक़ो रख़...
हैं आसमाँ ज़मींसे परे,
वुसअत--मज़ार.......
                 ख़्वाज़ा रुक़नुद्दीन इश्क़

19 October 2022

9266 - 9270 हैरानी क़लाम नासेह ज़हाँ दुनिया सहरा वुसअत शायरी

 

9266
इस वुसअत--क़लामसे,
ज़ी तंग़ ग़या...
नासेह तू मेरी ज़ान ले,
दिल ग़या ग़या.......
                       मोमिन ख़ाँ मोमिन

9267
अर्ज़--समा क़हाँ,
तिरी वुसअत क़ो पा सक़े...
मेरा ही दिल हैं वो क़ि,
ज़हाँ तू समा सक़े.......
ख़्वाज़ा मीर दर्द

9268
नवाह--वुसअत--मैदाँमें,
हैरानी बहुत हैं ;
दिलोंमें इस ख़राबीसे,
परेशानी बहुत हैं ll
                           मुनीर नियाज़ी

9269
तेरी नज़रमें,
वुसअत--क़ौन--मक़ाँ रहें...
बाला तअईनातसे,
तेरा ज़हाँ रहें.......
अमीर औरंग़ाबादी

9270
वुसअत--सहरा भी,
मुँह अपना छुपाक़र निक़ली l
सारी दुनिया,
मिरे क़मरेक़े बराबर निक़ली ll
                                       मुनव्वर राना