21 October 2019

4906 - 4910 हिसाब किताब सितम ज़ख्म ज़िम्मेदारी बाज़ार ज़िन्दगी शायरी


4906
हिसाब किताब हमसे ना पूछ,
अब  ज़िन्दगी...
तूने सितम नहीं गिने,
तो हमने भी ज़ख्म नहीं गिने...!

4907
ज़िन्दगीमें एक दूसरेके जैसा,
होना ज़रूरी नहीं होता...
एक दूसरेके लिए होना,
ज़रूरी होता हैं.......!

4908
क्या बेचकर हम तुझे खरीदें,
ज़िन्दगी...
सब कुछ तो गिरवी पड़ा हैं,
ज़िम्मेदारीके बाज़ारमें...

4909
मिलता तो बहुत कुछ हैं,
इस जिन्दगीमें,
बस हम गिनती उसीकी करते हैं...
जो हासिल हो सका.......

4910
"इतना क्यों सिखाए,
जा रही हो ज़िन्दगी...
हमें कौन सी,
सदियाँ गुज़ारनी हैं यहाँ..."

19 October 2019

4901 - 4905 मुनाफ़ा गहरे सौदा नज़ारा शोहरतें फुर्सत हिसाब ख़्वाहिश गम ज़िन्दगी शायरी


4901
ज़लज़ले भी बड़े गहरे हैं,
ज़िन्दगीके साहब​...
लोग अक्सर छोड़ जाते हैं,
अपना कहकर.......

4902
सिर्फ यारियाँ ही रह जाती हैं मुनाफ़ा बनके,
वर्ना ज़िन्दगीके सौदोंमें नुक़सान बहुत हैं l
बहुत ग़जबका नज़ारा हैं इस अजीबसी दुनियाका,
लोग सबकुछ बटोरनेमें लगे हैं खाली हाथ जानेके लियेll

4903
नेकियाँ खरीदी हैं हमने,
अपनी शोहरतें गिरवी रखकर...
कभी फुर्सतमें मिलना ज़िन्दगी,
तेरा भी हिसाब भी कर देंगे...!

4904
ज़िन्दगीमें सारा झगड़ा ही, 
ख़्वाहिशोंका हैं...
ना तो किसीको गम चाहिए,
ना ही किसीको कम चाहिए...

4905
छीन लिया जब ज़िन्दगीने,
ख़्वाहिशोंको मुझसे,
पैर मेरे ख़ुद--ख़ुद...
चादरके अंदर गये...!

18 October 2019

4896 - 4900 कसौटी रिश्ता ग़ज़ल शौक़ मुनाफ़ा अमीर काँटे कगार मज़ार ज़िन्दगी शायरी


4896
ज़िंदगीकी कसौटीसे,
हर रिश्ता गुज़र गया;
कुछ निकले खरे सोनेसे,
कुछका पानी उतर गया...

4897
शायरानासी है, ज़िन्दगीकी फ़ज़ा,
आप भी ज़िन्दगीका मजा लीजिये;
मैं ग़ज़ल बन गयी आपके सामने,
शौक़से अब मुझे गुनगुना लीजिये...

4898
बिन मेरे रह ही जायेगी,
कोई कोई कमी;
तुम ज़िन्दगीको,
जितनी मर्जी सवाँर लो...

4899
कुछ रिश्ते​,
मुनाफ़ा नहीं देते...
मगर​,
ज़िन्दगीको,
अमीर बना देते हैं...!
4900
ज़िन्दगी सारी गुज़र गई,
काँटोकी कगारपर फराज...
और फूलोंने मचाई हैं,
भीड हमारी मज़ारपर.......!

4891 - 4895 जहर याद साँसे शौक हकीकतें वक़्त आग चाह ज़िन्दगी शायरी


4891
अजीबसा जहर हैं,
तेरी यादोंमें...
मरते मरते मुझे,
सारी ज़िन्दगी लगेगी...!

4892
जो शख्स किसीपे मरा नहीं...
उसने सिर्फ़ साँसे ली,
ज़िन्दगीको जिया नहीं...!

4893
मीठेका शौक इसलिए भी रखते हैं,
क्योकि...
ज़िन्दगीकी हकीकतें कड़वी बहुत हैं।।

4894
उन्होंने वक़्त समझकर,
गुज़ार दिया हमको...
और हम,
उनको ज़िन्दगी समझकर,
आज भी जी रहे हैं.......

4895
मैने माँगा था थोड़ासा उजाला,
अपनी ज़िन्दगीमें...
चाहने वालोने तो,
आग ही लगा दी...!

16 October 2019

4886 - 4890 कोशिशें अदाएं ज़ालिम वक़्त दुआ काफिला उलझन साँस बात मुकद्दर ज़िन्दगी शायरी


4886
मेरी सब कोशिशें नाकाम थी,
उनको मनाने कि...
कहाँ सीखीं है ज़ालिमने,
अदाएं रूठ जाने कि...!

4887
मत कर मुझे भूलनेकी,
नाकाम कोशिशें...
तेरा यूँ हारना,
मुझे मंजूर नहीं है...

4888
ना डरा मुझे वक़्त,
नाकाम होगी तेरी हर कोशिशें;
ज़िन्दगीके मैदानमें खड़ा हूँ,
दुआओंका काफिला लेकर...

4889
यूँ तो उलझे है,
सभी अपनी उलझनोंमें;
पर सुलझाने की कोशिश,
हमेशा होनी चाहिए...

4890
तू जिंदगीको जी,
उसे समझनेकी कोशिश ना कर।
चलते वक़्तके साथ तू भी चल,
वक़्तको बदलनेकी कोशिश ना कर।
दिल खोलकर साँस ले,
अंदर ही अंदर घुटनेकी कोशिश ना कर।
कुछ बाते मुकद्दरपे छोड़ दे,
सब कुछ खुद सुलझानेकी कोशिश ना कर।

15 October 2019

4881 - 4885 कोशिश निगाह मंज़िल नाराज ख्वाहिश नजरअंदाज ज़िन्दगी शायरी


4881
ज़िन्दगी ये तेरी,
खरोंचे हैं मुझपर...
या फिर तू मुझे तराशनेकी,
कोशिशमें हैं.......!

4882
निगाहोंमें मंज़िल थी,
गिरे और गिरकर संभलते रहे।
हवाओंने तो बहुत कोशिश की,
मगर चिराग आँधियोंमें भी जलते रहे।।

4883
कोशिश कर,
तू सभीको ख़ुश रखनेकी...
नाराज तो यहाँ कुछ लोग,
खुदासे भी हैं.......

4884
ख्वाहिश ये बेशक नहीं की,
हर कोई "तारीफ" करे...
मगर कोशिश ये जरूर हैं की,
कोई "बुरा" ना कहे.......!

4885
कोशिश इतनी हैं,
कोई रूठे ना हमसे...
नजरअंदाज करने वालोसे,
नजर हम भी नही मिलाते.......!

14 October 2019

4876 - 4880 मोहब्बत क़त्ल निगाह हथियार अदालत ख्वाहिश याद काफ़िर ग़म कोशिश शायरी


4876
मेरा क़त्लकी कोशिश तो,
उनकी निगाहोंने की थी;
पर अदालतने उन्हें,
हथियार माननेसे इनकार कर दिया...!

4877
कोशिश बहुत कि,
ऱाज--मोहब्बत बयाँ ना हो...
पर मुमकिन कहाँ था कि,
आग लगे और धुआँ ना हो...!

4878
ख्वाहिश तो थी मिलनेकी,
पर कभी कोशिश नही की...
सोचा कि जब खुदा माना हैं,
उसको तो बिन देखे ही पूजेंगे...!

4879
के कोशिश ही क्युँ करते हैं,
आप हमें भूल जानेकी...
बस यादोंको कहो कि,
काफ़िर हो जाये.......

4880
तुझे पानेकी कोशिशमें,
कुछ इतना खो चुका हूँ मैं...
कि तू मिल भी अगर जाए तो,
अब मिलनेका ग़म होगा.......

13 October 2019

4871 - 4875 जमाने तजुर्बा बेवक़ूफ़ गम साँसे पल काँटें दुआ जिंदगी साथ शायरी


4871
जमानेके साथ,
जिंदगी चलानी पडी;
इंसानियत तो थी,
मगर छुपानी पडी...

4872
गम मेरे साथ साथ,
बहुत दूरतक गए ।
मुझमे थकन पाई तो,
बेचारे थक गए 
कृष्णबिहारी नूर

4873
कितना भी ज्ञानियोंके साथ बैठ लो...
तजुर्बा तो, बेवक़ूफ़ बननेके बाद ही मिलता हैं...

4874
कैसे ढूंढके लाऊँ,
वापिस उन खूबसूरत पलोंको...
ज़िन्दगी अब साँसे नहीं,
उसका साथ माँग रही हैं...!

4875
चलनेकी कोशिश तो करो,
दिशायें बहुत हैं।
रास्तोपे बिखरे काँटोंसे डरो,
तुम्हारे साथ दुआएँ बहुत हैं।।

12 October 2019

4866 - 4870 बिछड़ अधूरी ज़रूरत आदतें गम लहर किनारे कयामत ज़िन्दगी साथ शायरी


4866
कभी कभी हाथ छुड़ानेकी,
ज़रूरत नहीं होती...
लोग साथ रह कर भी,
बिछड़ जाते हैं.......

4867
कहती हैं मुझे ज़िन्दगी,
कि मैं आदतें बदल लूँ...
बहुत चला मैं लोगोंके पीछे,
अब थोड़ा खुदके साथ चल लूँ...!

4868
चायकी चुस्कीके साथ अक्सर,
कुछ गम भी पीता हूँ...
मिठास कम हैं ज़िन्दगीमें,
मगर जिंदादिलीसे जीता हूँ...!

4869
अभी तो साथ चलना हैं,
समंदरकी लहरोंमें...
किनारेपर ही देखेंगे,
किनारा कौन करता हैं...!

4870
अधूरी पड़ी ज़िन्दगी,
पूरी करते हैं...
कयामत जाने कब आए,
तुम रूको, हम साथ चलते हैं...!

4861 - 4865 परछाईं साँस अक्श खा़मोश आवाज वादे दुआ काफिला मुक़द्दर वक्त साथ शायरी


4861
आज परछाईंसे पुछा,
क्यूँ आती हैं मेरे साथ...
वो भी हँसकर बोली,
दूसरा हैं कौन तेरे साथ...?

4862
साँसके साथ,
अकेला चल रहा था...
जब साँस निकल गई तो,
सब साथ चल रहे हैं.......!

4863
बिखरे हैं अक्श कोई साज़ नहि देता,
खा़मोश हैं सब कोई आवाज नहि देता;
कलके वादे सब करते हैं मगर,
क्यो कोई साथ आज नहि देता ll

4864
मेरे साथ आपकी दुआओका,
काफिला चलता हैं;
मुक़द्दरसे कह दो,
अकेला नही हूँ मैं...!

4865
कभी साथ हैं,
तो कभी खिलाफ हैं...
वक्तका भी,
आदमी जैसा हाल हैं...!