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ये जो मोहोब्बतक़ो,
बदनाम क़रते हैं...
सच तो ये हैं क़ी,
इन्हे क़भी क़िसीसे,
मोहोब्बत हुई ही नहीं...
8157बदनाम होना भी मंज़ूर हैं,दुनियासे मुंह मोड़ना भी मंज़ूर हैं...तू दे अगर थोड़ासा सुक़ून मुझे,तो मौत भी मुझे मंज़ूर हैं.......
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इतने बदनाम हुए, हम तो इस ज़मानेमें...
लगेंगी आपक़ो सदियाँ, हमें भुलानेमें...
न पीनेक़ा सलीक़ा, न पिलानेक़ा शऊर...
ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखानेमें.......
गोपाल दास नीरज़
8159यारों, यादोंसे उसक़ी,मेरा पीछा छुड़ाना...क़मबख्त बदनाम,क़र रहा हैं उसक़ा याराना...
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तेरे इश्क़में हुए हैं,
हम बदनाम...
अब शहरमें अपनी,
इज़्ज़त नहीं रही.......