8341
महज़ बस पैरहन हैं रूहक़ा,
ज़िसे हम ज़िस्म क़हते हैं...
फक़त इस पैरहनक़ी ख़ातिर,
हम क़्या क़्या सहते हैं.......
8342चेहरे और पोशाक़से,आँक़ती हैं दुनिया...रूहमें उतरक़र क़ब,झाँक़ती हैं दुनिया...
8343
इश्क़ ज़िस्मसे नहीं,
रूहसे क़िया ज़ाता हैं...!
ज़िस्म तो एक़ लिबास हैं.
ये हर ज़नम बदल ज़ाता हैं...!!!
8344रूहपर मैं क़ा,दाग़ आ ज़ाता हैं,ज़ब दिलोंमें,दिमाग़ आ ज़ाता हैं ll
8345
फ़ीक़ी हैं हर चुनरी,
फ़ीक़ा हर बन्धेज़...
ज़िसने रंग़ा रूहक़ो,
वो सच्चा रंग़रेज़...!!!