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कुछ मुसाफ़िरोंक़ो मैंने,
राह भटक़ते देख़ा हैं...
मैंने शातिरक़ो भी,
धोख़ा ख़ाते देख़ा हैं...!
8467ज़ब थक़ गई मेरी,आँख़ें राह ताक़ते हुए...तुझे फ़िर ढूंढने मेरी,आँख़क़े आँसू निक़ले.......
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ऐ अदमक़े मुसाफ़िरो,
होशियार.......
राहमें ज़िंदग़ी ख़ड़ी होग़ी...!!!
साग़र सिद्दीक़ी
8469क़ौन क़िसीक़ा होता हैं,ज़िंदगीक़ी राहमें...ज़ब अंधेरा होता हैं तो,परछाई भी साथ छोड़ देती हैं...
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राह-ए-ज़िंदगी क़्या बताऊँ...
क़ैसे ग़ुज़र रही हैं...
शामें तन्हा हैं और रातें,
अक़ेली हो ग़यी हैं.......