26 August 2023

9916 - 9920 क़भी क़भी बात शायरी

 
9916
तुम समझो गर ये ख़ालीपन,
तो क़ोई बात भी बने...
क़े बातें बेवज़ह भी ज़रूरी हैं,
क़भी क़भी इश्क़में......

9917
मत पूछो क़ैसे गुज़रता हैं,
हर पल तुम्हारे बिना...
क़भी बात क़रनेक़ी हसरत,
क़भी देख़नेक़ी तमन्ना.......

9918
उसने क़ुछ यूँ भी,
होती हैं हमारी बातें...
ना वो बोलते हैं,  हम बोलते हैं ;
क़भी वक़्त निक़ालक़े,
हमसे बातें क़रक़े देख़ना...ll

9919
क़र दिया ना,
पराया तुमने भी...
बातें तो ऐसे क़रते थे,
जैसे क़भी नहीँ भूलेगे.....

9920
क़भी हमसे भी,
पल दो पल बातें क़र लिया क़रो,
क़्या पता आज़ हम तरस रहे हैं,
क़ल तुम तरस ज़ाओ.......

25 August 2023

9911 - 9915 ग़म बात शायरी

 
9911
तेरा चेहरा, तेरी बातें,
तेरा ग़म, तेरी यादें...
इतनी दौलत,
पहले क़हाँ थी पास मेरे...!

9912
तु बात क़रे, या ना क़रे,
तेरे बोलनेक़ा ग़म नहीं...
तु एक़ बार मुस्क़ुरा दे,
सौ बार बोलनेसे क़म नहीं...

9913
तो बात हैं मेरी मेहमान नवाज़ीमें,
क़ी ग़म एक़ बार आते हैं ;
तो ज़ानेक़ा नाम नहीं लेते...!

9914
ना ज़ाने क़्यों,
इतनी बेचैनी बढ़ ज़ाती हैं...
क़ोई बात क़भी,
ज़हनमें अटक़ ज़ाती हैं...
वैसे तो सब बेहतर हैं,
क़ोई ग़म नहीं हैं...
ज़ब देख़ता हूँ तुमक़ो,
साँसे अटक़ ज़ाती हैं......

9915
क़ान्हा तेरे दरमें आक़र,
ख़ुशीसे फ़ूल ज़ाता हूँ...
ग़म चाहे क़ैसा भी हो,
आक़र भूल ज़ाता हूँ...
बताने बात ज़ो आऊँ,
वहीं मैं भूल ज़ाता हूँ...
ख़ुशी इतनी मिलती हैं क़ि,
माँग़ना भी भूल ज़ाता हूँ......

24 August 2023

9906 - 9910 ख़ास उलझी बात शायरी

 
9906
देख़क़र उसक़ो अक्सर,
हमें एहसास होता हैं,
क़भी क़भी गम देनेवाला भी,
बहुत ख़ास होता हैं l
ये और बात हैं,
वो हर पल नहीं होता हमारे पास,
मगर उसक़ा दिया गम,
अक्सर हमारे पास होता हैं ll

9907
वो और उसक़ी हर बात,
मेरे लिए ख़ास हैं...
यहीं शायद मुहब्बतक़ा,
पहला एहसास हैं.......

9908
धडक़नोंक़ी यहीं तो ख़ास बात हैं...
भरे बाज़ारमें भी,
क़िसी एक़क़ो सुनाई देती हैं...

9909
सुलझ गई तो,
सिमटने लगेगी ज़िंदगी ;
क़ुछ बातें,
उलझी हीं रहने दो...ll

9910
होशक़ा पानी छिड़क़ो,
मदहोशीक़ी आँखोंपर...
अपनोंसे उलझों,
गैरोंक़ी बातोंपर.......

21 August 2023

9901 - 9905 यारी यार दुश्मन बात शायरी

 
9901
ज़िस इंसानक़ी हर बात,
आपक़ो सोचनेपर मज़बू क़र दे...
उस इंसानक़े साथ,
क़भी दुश्मनी मत क़रो...ll

9902
तुझसे अच्छे तो मेरे दुश्मन निक़ले,
ज़ो हर बातपर क़हते हैं...
तुम्हें नहीं छोड़ेंगे !!!

9903
प्यार देनेसे बेटा बिग़ड़े,
भेद देनेसे नारी l
लोभ देनेसे नोक़र बिग़ड़े,
धोख़ा देनेसे यारी l
ये बात ज़नहितमें ज़ारी ll

9904
बेवज़ह हैं,
तभी तो यारी हैं...
वज़ह होती,
तो व्यापार होता...!

9905
सिर्फ़ एक़ सफ़ाह पलटक़र उसने,
बीती बातोंक़ी दुहाई दी हैं l
फ़िर वहीं लौटक़े ज़ाना होगा,
यारने क़ैसी रिहाई दी हैं ll
                                         गुलज़ार

20 August 2023

9896 - 9900 गरूर ज़ीना बरगद चाहत बात शायरी

 
9896
वो ख़ुदपर गरूर क़रते हैं,
तो इसमें हैंरतक़ी क़ोई बात नहीं...
ज़िन्हें हम चाहते हैं,
वो आम हो हीं नहीं सक़ते......

9897
क़ोई चाहतक़ी बात क़रता हैं,
तो क़ोई चाहने क़ी.......

9898
बात ये नहीं हैं क़ि,
तेरे बिना ज़ी नहीं सक़ते...
बात ये हैं क़ि तेरे बिना,
ज़ीना नहीं चाहते.......

9899
क़ोहनीपर टिक़े हुए लोग,
टुक़ड़ोंपर बिक़े हुए लोग,
क़रते हैं बरगदक़ी बातें...
ये गमलेमें उगे गए लोग,
भाड़में ज़ाए लोग और लोग़ोंक़ी बातें...
हम तो वैसेहीं ज़ीयेंगे,
जैसे हम ज़ीना चाहते हैं......

9900
बातें तो हम भी,
उनसे बहुत क़रना चाहते हैं ;
पर ना ज़ाने क़्यूँ,
वो हमसे मुँह छुपाये बैठे हैं...

19 August 2023

9891 - 9895 क़ुछ अनक़हीं अनसुनी बात शायरी

 
9891
रहने दे क़ुछ बातें,
यूँ हीं अनक़हीं सी...
क़ुछ ज़वाब तेरी आँखोंमें,
देख़े हैं अटक़े हुए.......

9892
बहुतसी बातें ज़बाँसे,
क़हीं नहीं ज़ाती...
सवाल क़रक़े उसे,
देख़ना ज़रूरी हैं.......

9893
ज़ो बातें क़हीं नहीं ज़ाती,
वो बातें क़ही नहीं ज़ाती ll

9894
एक़ एहसास तबभी था,
एक़ एहसास अब भी हैं...
क़ुछ अनक़हीं क़ुछ अनसुनी बातोमें,
एक़ ज़ज़्बात अब भी हैं...
यूँ वक़्त तो गुज़र गया हैं बहोत लेक़िन,
आपसे फ़िर मिलनेक़ी चाह अब भी हैं...!

9895
याद रख़िये...
दुनियामें ज़ितनी भी अच्छी बातें हैं,
सब क़हीं ज़ा चुक़ी हैं l
अब सिर्फ़ अमल क़रना बाक़ी हैं...ll

18 August 2023

9886 - 9890 ज़माने शुक़्रिया गम मुस्क़ुरा दुश्मन क़माल गहरी राज़ निख़र क़हानी शराब फ़िज़ूल क़माल बात शायरी

 

9886
गम मिलते हैं तो,
और निख़रती हैं शायरी...
यह बात हैं तो,
सारे ज़मानेक़ा शुक़्रिया...

9887
तुझसे अच्छे तो,
मेरे दुश्मन निक़ले...!
ज़ो हर बातपर क़हते हैं,
तुम्हें नहीं छोड़ेंगे.......

9888
तुम शायरीक़ी,
बात क़रते हो...
हम तो बातें भी,
क़मालक़ी क़रते हैं...!

9889
छुपी होती हैंक़मालमें,
गहरी राज़क़ी बातें...
लोग शायरी समझक़े,
बस मुस्क़ुरा देते हैं.....

9890
बहुत हो गयी शायरी,
क़हानी और शराबक़ी बातें...
तुम्हारे सिवा अब,
सब लगती हैं फ़िज़ूलक़ी बातें...

17 August 2023

9881 - 9885 मोहब्बत मुस्क़ुरा आँख़ें ज़रूरी ख़बर क़दर मालूम हसरत बात शायरी

 
9881
क़भी मुस्क़ुराती आँख़ें भी,
क़र देती हैं क़ई दर्द याँ...
हर बातक़ो रोक़र ही बताना,
ज़रूरी तो नहीं.......

9882
एक़ बात सीख़ी हैं रंग़ोंसे,
अग़र निख़रना हैं,
तो बिख़रना ज़रूरी हैं.......!

9883
ज़रूरी नहीं क़ि तू मेरी हर बात समझे,
ज़रूरी ये हैं क़ि तू मुझे क़ुछ तो समझे,
बस एक़ बातक़ी उसक़ो ख़बर ज़रूरी हैं l
क़ि वो हमारे लिए क़िस क़दर ज़रूरी हैं ll

9884
नहीं मालूम हसरत हैं,
या तू मेरी मोहब्बत हैं ;
बस इतनीसी बात ज़ानता हूँ क़ि,
मुझक़ो तेरी ज़रूरत हैं.......

9885
अच्छा सुनो ना,
ज़रूरी नहीं हर बार अल्फ़ाज़ हीं हो...
क़भी ऐसा भी हो,
क़ि मैं सोचूं...
और तुम बात समझ ज़ाओ.......!!!

16 August 2023

9876 - 9880 मुलाक़ात क़ायनात ज़िन्दग़ी बात शायरी

 

9876
नज़र ही नज़रमें,
मुलाक़ात क़र ली...
रहे दोनों ख़ामोश,
और बात क़र ली...!

9877
तयशुदा मुलाक़ातोंमें,
वो बात नहीं बनती...
क़्या ख़ूब था राहोंमें,
अचानक़ सामनेसे आना तेरा...!!!

9878
क़ुछ तो सोचा होग़ा,
क़ायनात ने तेरेमेरे रिश्तेपर...
वरना इतनी बड़ी दुनियामें,
तुझसे हीं बात क़्यों होती.......!

9879
ज़लवे तो बेपनाह थे,
इस क़ायनातमें...
ये बात और हैं क़ि,
नज़र तुमपर हीं ठहर ग़ई...

9880
ख़िलख़िलाती ज़िन्दग़ी होनी चाहिए,
बातोमें रूहानी होनी चाहिए,
सारी दुनिया अपनी हो ज़ाती हैं...
बस यारक़ी मेहरबानी होनी चाहिए ll

15 August 2023

9871 - 9875 आरज़ू वक़्त मुक़र्रर बात मुलाक़ात शायरी


9871
ज़ी क़ी ज़ी हीं में,
रहीं बात होने पाई...
हैफ़ क़ि उससे,
मुलाक़ात होने पाई.......
                         ख़्वाज़ा मीर


9872
ज़ी भरक़े देख़ा,
क़ुछ बात क़ी...
बड़ी आरज़ू थी,
मुलाक़ात क़ी......
बशीर बद्र


9873
मुनहसिर वक़्त--मुक़र्ररपें,
मुलाक़ात हुई...
आज़ ये आपक़ी ज़ानिबसे,
नई बात हुई.......
                               हसरत मोहानी


9874
क़ैसे क़ह दूँ क़ि,
मुलाक़ात नहीं होती हैं l
रोज़ मिलते हैं मग़र,
बात नहीं होती हैं ll
अज्ञात


9875
ये मुलाक़ात,
मुलाक़ात नहीं होती हैं l
बात होती हैं मगर,
बात नहीं होती हैं ll
                      हफ़ीज़ ज़ालंधरी

14 August 2023

9866 - 9870 दिल हँसी रुलाना लौट ग़ुरूर टूट चल सँभल याद रईस बात शायरी

 
9866
मेरी वो बातें ज़िनपर,
तुम हँसा क़रती थी....
क़भी वो बातें रुलाये तो,
लौट आना.......

9867
एक़ बात पुछु,
ज़वाब मुस्कुराक़े देना...
मुझे रुलाक़र,
ख़ुश तो होना.......

9868
ज़रासी बात सहीं,
तेरा याद ज़ाना...
ज़रासी बात बहुत देरतक़,
रुलाती थी..............
                       नासिर क़ाज़मी

9869
सँभलक़े चलनेक़ा सारा ग़ुरूर टूट ग़या,
इक़ ऐसी बात क़हीं उसने लड़ख़ड़ाते हुए l
ये मस्ख़रोंक़ो वज़ीफ़े यूँहीं नहीं मिलते,
रईस ख़ुद नहीं हँसते हँसाना पड़ता हैं ll

9870
हर मायूसक़ो हँसानेक़ा,
क़ारोबार हैं अपना...
दिलोंक़ा दर्द ख़रीद लेते हैं,
बस इसी बातक़ा रोज़गार हैं अपना !!!

13 August 2023

9861 - 9865 क़हना बात शायरी

 
9861
मैं चुप रहा और,
ग़लतफहमियाँ बढती ग़यी...
उसने वो भी सुना ज़ो,
मैने क़भी क़हा हीं नहीं.......

9862
उन्होंने क़हा,
बहुत बोलते हो,
अब क़्या बरस ज़ाओग़े...?
हमने क़हा,
चुप हो ग़ये ना,
तरस ज़ाओग़े......?

9863
शुक्रिया क़ैसे क़हें आपक़ो,
ज़ो बात क़ही आपने,
सच लगने लगी मनक़ो...

9864
मैं खुश हूँ क़ि क़ोई मेरी बात तो क़रता हैं...
बुरा क़हता हैं तो क़्या हुआ वो याद तो क़रता हैं...
तेरी यादें तेरी बातें बस तेरे हीं फसाने हैं...
हाँ क़बूल क़रते हैं क़ि हम तेरे दीवाने हैं ll

9865
हर एक़ बातपें क़हते हो तुम,
क़ी तुम क़्या हो...?
तुम्ही क़हो क़ि,
ये अंदाज़--गुफ्तगु क़्या हैं.......?

12 August 2023

9856 - 9860 चुप सिख़ लम्हे तजुर्बे नश्तर दवाई छेड़ें वफ़ा क़िस्सा बात शायरी

 
9856
तुमने दिये थे ज़ो क़भी,
वो दर्दक़े लम्हे पढ़ लेता हूँ अब ;
ऐसा लगता हैं क़ी,
तुमसे बात हो रही हैं...

9857
तजुर्बेने एक़ बात सिख़ाई हैं,
एक़ नया दर्द ही...
पुराने दर्दक़ी दवाई हैं.......

9858
चुप रहो यह अलग बात हैं,
क़ुछ दर्द ऐसे होते हैं...
ज़िन्हें लफ्ज़ोमें याँ,
नहीं क़िया ज़ा सक़ता.......

9859
आप छेड़ें न वफ़ाक़ा क़िस्सा,
बातमें बात निक़ल आती हैं...
दर्द असअदी

9860
मेरे दर्दक़ा मरहम बन सक़ो,
क़ोई बात नहीं ;
मगर मेरे ज़ख़्मोंक़ा नमक़,
बन ज़ाना क़भी l
मेरे साथ चल सक़ो,
तो क़ोई बात नहीं ;
मगर मेरे पैरोंक़ा नश्तर,
बन ज़ाना क़भी ll