7601
जो दे रहे हो हमें,
ये तड़पनेक़ी सज़ा तुम...
हमारे लिए ये,
सज़ा-ए-मौतसे भी बदतर हैं...
7602
ना
आये
मौत,
ख़ुदाया
तबाह-हालीमें,
ये
नाम
होग़ा,
ग़म-ए-रोज़ग़ार सह न सक़े…
मौतक़े साथ हुई हैं,
मिरी शादी सो ''ज़फ़र'
उम्रक़े आख़िरी लम्हातमें,
दूल्हा हुआ मैं.......!
ज़फ़र इक़बाल
7604
न
तुम
आए,
न
चैन
आया...
न
मौत
आई,
शब-ए-व’अदा...
दिल-ए-मुज़्तर था, मैं था...
और
थीं
बेताबियाँ
मेरी.......
फ़य्याज़
हाशमी
7605
तुम तसल्ली न दो, यूँ ही बैठे रहो,
वक्त क़ुछ मेरे, मरनेक़ा टल ज़ाएग़ा...
ये क्या क़म हैं, मसीहाक़े होने ही से,
मौतक़ा भी इरादा बदल ज़ाएग़ा.......!
बेनियाज़ी