20 February 2017

996 निगाह मंज़िल हवा संभल चिराग आँधि कोशिश शायरी


996
निगाहोंमें मंज़िल थी;
गिरे और गिरकर संभलते रहें;
हवाओंने तो बहुत कोशिश की;
मगर चिराग आँधियोंमें भी जलते रहें।

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