20 February 2017

998 हौसला याद मेहनत हासिल तख्तोताज मंज़िल अंधेरा जुगनू रौशनी मोहताज़ शायरी


998
जब टूटने लगे हौसला,
तो बस ये याद रखना,
बिना मेहनतके,
हासिल तख्तोताज नहीं होते,
ढूंढ लेना अंधेरोमें,
मंज़िल अपनी,
जुगनू कभी रौशनीके,
मोहताज़ नहीं होते !

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