5406
बस दो ही
गवाह थे,
मेरी वफ़ाके...
वक्त और वो,
एक गुज़र गया
दूसरा मुकर गया...
5407
सहेलियां
जन्नत हैं या
दौलत पता नहीं,
पर सहेलियां सुकून होती
हैं;
वक्त कितना भी कठिन
हो,
वह मुस्कुराहट की वजह
होती हैं;
ये मेरे ख़्वाबोंकी दुनिया नहीं
सही लेकिन,
अब आ गया
हूँ तो दो
दिन क़याम करता
चलूँ I
शादाब लाहौरी
5408
कितने चालाक हैं,
कुछ मेरे अपने
भी...
तोहफे मे घडी
तो दी,
मगर वक्त नही...
5409
खास हैं वो
लोग,
इस दुनियामें जो...
वक्त आने पर,
वक्त दिया करते
हैं...
5410
सदा उनके कर्जदार
रहिये,
जो आपके लिये...,
कभी खुदका वक्त नहीं
देखते