2131
शिकवे शिकायतमें,
उलझकर रह गई मोहब्बत अपनी,
समझ नहीं आता इश्क किया था,
या कोई मुकदमा लड रहे थे.......
2132
" टूटकर बिखर जाते हैं...
मिट्टीकी दीवारकी तरह वो;
लोग जो खुदसे ज्यादा...
किसी औरसे मोहब्बत किया करते हैं । "
2133
"इश्क करना हैं किसीसे तो,
बेहद कीजिए,
हदें तो सरहदोंकी होती हैं,
दिलोंकी नहीं ।
2134
सख़्त हाथोंसे भी,
छूट जाती हैं कभी उंगलियाँ...
रिश्ते ज़ोरसे नहीं,
प्यारसे थामे जाते हैं...!
2135
सब कुछ बदला बदला था,
जब बरसो बाद मिले;
हाथ भी न थाम सके वो,
इतने परायेसे लगे . . . ।