3 April 2021

7356 - 7360 हसरत याद ख़्वाब अंज़ाम हक़ीक़त शरारत बेवफ़ा नाराज़ नाराज़गी शायरी

 
7356
मुझक़ो हसरतक़ी हक़ीक़तमें,
देख़ा उसक़ो...
उसक़ो नाराज़गी क़्यूँ,
ख़्वाबमें देख़ा था मुझे.......!
                            शोहरत बुख़ारी

7357
अंज़ामतक पहुँचनेक़ा,
आगाज़ हो गया;
अच्छा हुआ कि,
मुझसे वो नाराज़ हो गया ll

7358
नाराज़ ना होना, हमारी शरारतोंसे...
क़्योंकि इन्ही शरारतोंसे हम,
हमेशा आपक़ो याद आएँगे.......!!!

7359
देखो नाराज़गी मुझसे,
ऐसे भी ज़ताती हैं वो...
छुपाती भी क़ु नहीं...
ज़ताती भी क़ु नहीं...

7360
नाराज़ हूँ मैं उससे,
उसने मनाया भी नहीं...
वो लोगोंसे क़हता फ़िरता हैं,
बेवफ़ा हूँ मैं.......

2 April 2021

7351 - 7355 मोहब्बत प्यार हुस्न इश्क़ नख़रे ज़ान समझ ख़ुशी नफ़रत नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7351
नख़रे तेरे, नाराज़गी तेरी,
देख़ लेना.......
एक दिन ज़ान ले लेगी मेरी...!

7352
हुस्न यूँ इश्क़से,
नाराज़ हैं अब...
फूल ख़ुश्बूसे,
ख़फ़ा हो जैसे.......!
इफ़्तिख़ार आज़मी

7353
क़ु नाराज़गी सिर्फ़,
ग़ले लगनेसे ही दूर होती हैं...
समझने समझानेसे नहीं.......!

7354
नाराज़गी हो तो,
मोहब्बत हैं बे-मज़ा...
हस्ती ख़ुशी भी, ग़म भी हैं,
नफ़रत भी, प्यार भी.......!
ज़ामी रुदौलवी

7355
ख़ामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दोंसे लोग़.......
नाराज़ बहुत हुआ करते हैं...!

1 April 2021

7346 - 7350 ज़िन्दगी मोहब्बत मुलाक़ात चाहत याद दुनिया नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7346
नाराज़गी भी मोहब्बतक़ी,
बुनियाद होती हैं...
मुलाक़ातसे भी प्यारी,
क़िसीक़ी याद होती हैं...!
7347
वो नाराज़ होता हैं,
तब मुझे दुनियाक़ी,
सबसे महेंगी चीज,
उसक़ी मुस्क़ान लगती हैं...

7348
क़्यों नाराज़ होते हो,
मेरी इन नादान हरतोंसे...
क़ु दिनक़ी ज़िन्दगी हैं,
फिर चले ज़ाएँगे तुम्हारे इस जहाँसे...

7349
तेरी नाराज़गी, मेरी दीवानगी...
चल देख़ें, क़िक़ी उम्र ज़्यादा हैं...?

7350
नाराज़गी उनसे भले,
बेशुमार रहती हैं...
पर उन्हें देखनेक़ी चाहत,
बरकरार रहती हैं.......!

31 March 2021

7341 - 7345 मोहब्बत वक़्त फितरत वज़ह कफ़न नाराज़ शायरी

 

7341
मुझे तो तुमसे नाराज़,
होना भी नहीं आता...
 ज़ाने तुमसे कितनी,
मोहब्बत कर बैठा हूँ मैं...!!!

7342
तुझसे नहीं,
तेरे वक़्तसे नाराज़ हूँ;
जो कभी तुझे,
मेरे लिए नहीं मिला ll

7343
मेरी फितरतमें नहीं हैं,
किसीसे नाराज़ होना...
नाराज़ वो होतें हैं जिन्हें,
अपने आपपर गुरूर होता हैं...!

7344
मुझको छोङनेकी,
वज़ह तो बता देते...l
मुझसे नाराज़ थे, या...
मुझ जैसे हज़ारों थे.......?

7345
मुझसे नाराज़ हो,
कहीं भी खुदको रख लूँगा;
तरसोगे एक दिन जब,
कफ़नसे खुदको ढक लूँगा...ll

30 March 2021

7336 - 7340 खामोश आवाज़ अंदाज़ फ़रेब वक़्त नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7336
यहाँ सब खामोश हैं,
कोई आवाज़ नहीं करता...
सच बोलकर कोई किसीको,
नाराज़ नहीं करता.......

7337
किसीसे नाराज़गी,
इतने वक़्ततक रखो, के...
वो तुम्हारे बगैर ही,
ज़ीना सीख़ जाएँ.......

7338
ज़ीना तो हमे भी,
बिंदास आता हैं...
लेकिन ज़िंदगी आज़कल,
कुछ नाराज़ हैं हमसे.......

7339
नाराज़ नहीं हूँ,
तेरे फ़रेबसे...
ग़म ये हैं कि तेरा,
यकीन अब कैसे करू...?

7340
हर बात,
खामोशीसे मान लेना...
यह भी अंदाज़ होता हैं,
नाराज़गीका.......

28 March 2021

7331 - 7335 गम याद मौत आदत आहट मिजाज नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7331
तुम मिल गए तो,
मुझसे नाराज़ हैं खुदा...!
कहता हैं कि तू अब.
कुछ माँगता नहीं हैं.......!

7332
अपनी तबीयतका भी,
अलग ही मिजाज हैं...
लोग मौतसे डरते हैं,
हम उनकी नाराज़गीसे...

7333
गमे-दुनिया,
हो नाराज़...
मुझको आदत हैं,
मुस्कुरानेकी.......
   अब्दुल हमीद अदम

7334
सारा जहाँ चुपचाप हैं,
आहटें ना साज़ हैं;
क्यों हवा ठहरी हुई हैं...
आप क्या नाराज़ हैं...?

7335
कहीं नाराज़  हो जाए,
उपरवाला मुझसे...
हर सुबह उठते ही, उससे पहले...
तुझे जो याद करता हूँ.......!

7326 - 7330 इश्क़ कागज जिन्दगी मौत दुनिया दिवानगी राज़ शायरी

 

7326
हर राज़ लिखा नहीं जाता...
कागज भी गद्दार होता हैं.......

7327
मौत हैं वह राज़ जो,
आखिर खुलेगा एक दिन;
जिन्दगी हैं वह मुअम्मा,
कोई जिसका हल नहीं...ll
अफसर मेरठी

7328
वो पूछते हैं हमसे,
हमारी दिवानगीका राज़...
अब कैसे बताये उन्हे,
उन्हीसे हमे इश्क़ हुवा हैं...!

7329
सुबहे-इशरत शामे-गमके बाद,
आती हैं नजर...
राज़ यह समझा हैं,
मैंने जाके जिन्दानोंके पास...
अलम मुजफ्फरनगरी

7330
एक राज़की बात बताये,
किसीको बताना नहीं...!
इस दुनियामें अपने सिवा,
कुछ भी अपना नहीं होता...!!!

26 March 2021

7321 - 7325 दिल प्यार ज़िक्र ख़ुशी लज़्ज़त इजाज़त ज़िन्दगी राज़ शायरी

 

7321
लोग आज कल मेरी,
ख़ुशीका राज़ पूछते हैं...!
इजाज़त हो तो तुम्हारा,
नाम बता दूँ.......!!!

7322
राज़ किसीको ना कहो तो,
एक बात कहूँ...
हम रफ्ता रफ्ता तेरे,
होते जा रहें हैं.......

7323
ना राज़ हैं ज़िन्दगी,
ना नाराज़ हैं ज़िन्दगी...
बस जो हैं वो,
आज हैं ज़िन्दगी.......

7324
राज़ ये सबको बतानेकी,
ज़रूरत क्या हैं.......
दिल समझता हैं तेरे ज़िक्रमें,
लज़्ज़त क्या हैं.......!!!

7325
दुनियाँमें इतनी रस्में क्यों हैं,
प्यार अगर ज़िंदगी हैं;
तो इसमें कसमें क्यों हैं,
हमें बताता क्यों नहीं ये राज़ कोई,
दिल अगर अपना हैं,
तो किसी और के बसमें क्यों हैं.......!

25 March 2021

7316 - 7320 क़ातिल तन्हा सफर वक़्त करवट दास्तान बेवजह ग़ुरूर तकलीफ मोड़ शायरी

 

7316
देखोगे तो हर मोड़पें,
मिल जाएँगी लाशें...!
ढूँडोगे तो इस शहरमें,
क़ातिल मिलेगा.......!!!
         मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

7317
कई मोड़ आएंगे,
अभी इस सफरमें...
और हर मोड़के साथ,
दास्तान बनती जाएगी...

7318
वक़्तकी करवटको,
कैसे बदलूँ...?
तुम बेवजह चले गए,
मुँह मोड़के.......

7319
यूँ तो मोड़ जिन्दगीमें,
कुछ ऐसे भी आएंगे;
तकलीफमें होगे तुम,
साथ निभाने वालेही,
तन्हा छोड़ जाएंगे.......

7320
ग़ुरूर हैं मुझमें,
तो तोड़कर दिखा l
मैं दरिया हूँ,
मेरा रास्ता मोड़कर दिखा ll

23 March 2021

7311 - 7315 दिल यकीन ज़िन्दगी वक़्त लम्हात जज्बात अंदाज पुकार साथ राह मोड़ शायरी

 

7311
ज़िन्दगीके हर मोड़पर,
तुम साथ रहना...
चाहे दूर रहो पर,
हमेशा दिलके पास रहना...

7312
जिंदगीके किसी मोड़पर,
अगर तुम लौट भी आये,
तो क्या हैं...
वो लम्हात, वो जज्बात, वो अंदाज...
तो ना अब लौटेंगे कभी,
और शायद...
मेरी तुम्हारे लिए तड़प भी...

7313
खड़ा हूँ उसी मोड़पर,
मैं वापिस लौटा नहीं...
पहले कहा, चुप रहो...
फिर पुकारा भी नहीं.......

7314
ज़िंदगी तुझे अपने ही सफ़रमें,
हम कैसे खो देते हैं...
राह बड़ी सीधी हैं,
मोड़ तो सारे मनके हैं.......!

7315
यकीनन वो अगले मोड़पें,
नहीं रुकने वाला;
मैंने देखा हैं उसे,
वक़्तसे तेज़ भागते हुए ll

22 March 2021

7306 - 7310 मुलाक़ात याद ज़िंदगी हमदर्द मुसाफ़िर मोड़ शायरी

 

7306
कहाँ के रुकने थे रास्ते,
कहाँ मोड़ था, उसे भूल जा...
वो जो मिल गया उसे याद रख,
जो नहीं मिला, उसे भूल जा...
              अमजद इस्लाम अमजद

7207
मुस्कुराते पलकोंपें सनम चले आते हैं,
आप क्या जानो कहाँसे हमारे गम आते हैं...
आज भी उस मोड़पर खड़े हैं जहाँ,
किसीने कहा था कि ठहरो हम अभी आते हैं...

7308
ज़िंदगीके वो,
किसी मोड़पें गाहे गाहे,
मिल तो जाते हैं, पर...
मुलाक़ात कहाँ होती हैं...
                     अहमद राही

7309
हर मोड़पें मिल जाते हैं,
हमदर्द हजारों...
शायद हमारी बस्तीमें,
अदाकार बहुत हैं.......!

7310
मुसाफ़िर हैं हम भी,
मुसाफ़िर हो तुम भी...
किसी मोड़पर फिर,
मुलाक़ात होगी.......
                  बशीर बद्र

21 March 2021

7301 - 7305 दिल ज़िंदगी मोहब्बत दर्द क़सूर ख़ता ग़म तकलीफ सज़ा शायरी


7301
हर इक मोड़पर,
हम ग़मोंको सज़ा दें...
चलो ज़िंदगीको,
मोहब्बत बना दें.......!
                सुदर्शन फ़ाकिर

7302
ये जब्र भी देखा हैं,
तारीख़की नज़रोंने...
लम्होंने ख़ता की थी,
सदियोंने सज़ा पाई...

7303
उसके दिलकी भी,
कड़ी दर्दमें गुज़री होगी...
नाम जिसने भी मुहब्बतका,
सज़ा रखा होगा.......!

7304
कसूर तो,
बहुत किये ज़िन्दगीमें...
पर सज़ा वहाँ मिली,
जहाँ बेक़सूर थे हम.......

7305
सज़ा देनी हमेभी आती हैं,
बेखबर...
पर कोई तकलीफसे गुज़रे,
ये हमे मंजूर नहीं.......

20 March 2021

7296 - 7300 दिल इश्क़ ज़िंदगी मोहब्बत बज़्म याद ग़लतफहमी बेक़सूर रज़ा सज़ा शायरी

 

7296
ग़लतफहमीयोंका बहाना बनाके,
नजरे चुराती हैं हमसे आप;
दिल चुराके मिलनेकी,
ज़ा बारबार देती हैं आप ll

7297
दिल-गिरफ़्ता ही सही,
बज़्म ज़ा ली ज़ाएँ...
याद--ज़ानाँसे कोई,
शाम ख़ाली ज़ाएँ...
अहमद फ़राज़

7298
ज़िंदा हूँ मगर, ज़िंदगीसे दूर हूँ मैं,
ज़ क्यों इस कदर मजबूर हूँ मैं,
बिना गलतीकी ज़ा मिलती हूँ मुझे...
किससे कहूँ की आखिर बेक़सूर हूँ मैं...

7299
इश्क़के खुदासे पूछो,
उसकी ज़ा क्या हैं...
इश्क़ अगर गुनाह हैं,
तो इसकी सज़ा क्या हैं...?


7300
मुझको मोहब्बतकी,
ऐसी
ज़ा ना दे...
या तो जी लेने दे,
या तो मर ज़ाने दे...!

19 March 2021

7291 - 7295 मोहब्बत गुनाह लम्हें वाकिफ खामोश तन्हाई इल्ज़ाम माफ सज़ा ख़ता शायरी

 

7291
गुनहगारोंमें शामिल हैं,
गुनाहोंसे नहीं वाकिफ...
सज़ाको जानते हैं हम,
खुदा ज़ाने ख़ता क्या हैं...?
                 चकबस्त लखनवी

7292
तन्हाईके लम्हें अब तेरी,
यादोंका पता पूछते हैं...!
तुझेमें भूलनेकी बात करूँ तो,
ये तेरी ख़ता पूछते हैं.......!!!

7293
बहुत करीब के,
उसने ये कहा...
कोई ख़ता तो कर कि,
मैं माफ करूँ.......!

7294
नज़रअंदाज़ करनेवाले,
तेरी कोई ख़ता ही नहीं...
मोहब्बत क्या होती हैं,
शायद तुझको पता ही नहीं...!

7295
हर इल्ज़ामका हकदार,
वो हमें बना ज़ाते हैं...
हर ख़ताकी सज़ा,
वो हमें सुना ज़ाते हैं...
और हम हर बार,
खामोश रह ज़ाते हैं...
क्यों कि वो अपने होनेका,
हक जता ज़ाते हैं...!