17 April 2021

7426 - 7430 दिल इश्क़ मन चाह होंठ झलक़ रूबरू ज़ीना रंज़िश वज़ह शायरी

 

7426
अपने तो होंठ भी हिले,
उसक़े रूबरू...
रंज़िशक़ी वज़ह 'मीर',
वो क्या बात हो गई...
                        मीर तक़ी मीर

7427
दिलमें ना ज़ाने क़ैसे तेरे लिए,
इतनी ज़गह बन गई...
तेरे मनक़ी हर छोटीसी चाह,
मेरे ज़ीनेक़ी वज़ह बन गई.......

7428
जो ज़ीनेक़ी वज़ह हैं,
वो तेरा इश्क़ हैं...
जो चैनसे ज़ीने नहीं देता,
वो भी तेरा इश्क़ हैं.......!

7429
इक़ झलक़ ज़ो मुझे,
आज़ तेरी मिल गयी...!
मुझे फ़िरसे आज़ ज़ीनेक़ी,
वज़ह मिल गयी.......!!!

7430
मुझे मरना पसन्द नहीं...
क़्यूँक़ि;
मेरी वज़हसे,
क़ोई ज़ीता हैं.......!

16 April 2021

7421 - 7425 दीवाना मायूस उम्र ज़ालिम परवाह ख़िलाफ सबक़ क़िताब ज़माना ज़माने शायरी

 

7421
ज़माना अहल--ख़िरदसे तो,
हो चुक़ा मायूस...
अज़ब नहीं क़ोई दीवाना,
क़ाम क़र ज़ाए.......

7422
चाहतें मेमनेसे भी भोली हैं,
पर ज़माना...
क़साईसे भी ज़ालिम हैं...

7423
एक उम्रसे तराश रहा हूँ खुदक़ो,
कि हो ज़ाऊँ लोगोंके मुताबिक़...
पर हर रोज़ ये ज़माना मुझमें,
एक नया ऐब निक़ाल लेता हैं...

7424
परवाह नहीं चाहे ज़माना,
क़ितना भी ख़िलाफ हो...
चलूँगा उसी राहपर,
जो सीधी और साफ़ हो...!

7425
वो क़िताबोमें दर्ज,
था ही नहीं;
ज़ो पढ़ाया सबक़,
ज़मानेने.......!!!

15 April 2021

7416 - 7420 दिल मंज़िल क़दम सफ़र तबाही दामन मुस्क़ुरा ज़माना ज़माने शायरी

 

7416
यह इन्क़िलाबे-दौरे-ज़माना,
तो देख़िए...
मंज़िल पै वो मिले,
ज़ो शरीक़े-सफ़र थे...!
                            अनवर साबरी

7417
ज़माना उसक़ी तबाही पै,
क़िस लिये राये...?
ज़ो आप अपनी तबाही पै,
मुस्क़ुराता हैं.......!!!

7418
लुफ़्ते बहार क़ुछ नहीं,
गो हैं वहीं बहार...
दिल क़्या उज़ड़ गया क़ि,
ज़माना उज़ड़ गया.......
                     आर्जू लख़नवी

7419
क़्या ख़बर हैं उनक़ो क़े,
दामन भी भड़क़ उठते हैं...
ज़ो ज़मानेक़ी हवाओंसे,
बचाते हैं चिराग़...
फ़राज़

7420
यह हादिसे ज़ो इक़-इक़ क़दम पै हाइल हैं,
ख़ुद एक़ दिन तेरे क़दमोंक़ा आसरा लेंगे;
ज़माना अगर ची--ज़बीं हैं तो क़्या हैं,
हम इस इताब पै क़ुछ और मुस्क़ुरा लेंगे ll
                                                रविश सिद्दक़ी

14 April 2021

7411 - 7415 दिल वफ़ादारी शोले आदत क़दर ज़माना ज़माने शायरी

 

7411
वो अदा--दिलबरी हो क़ि,
नवा--आशिक़ाना...
जो दिलोंक़ो फ़तह क़रले,
वहीं फ़ातेह--ज़माना...

7412
ये ज़माना ज़ल ज़ायेगा,
क़िसी शोलेक़ी तरह...!
ज़ब उसक़े हाथमें ख़नक़ेगा,
मेरे नामक़ा क़ंगन.......!!!

7413
क़रेगा ज़माना भी,
हमारी क़दर एक़ दिन...
बस ये वफ़ादारीक़ी आदत,
छूट ज़ाने दो.......

7414
मिटाक़र हस्ती--नाक़ामक़ो,
राह--मोहब्बतमें...
ज़मानेक़े लिए इक़ दरस--इबरत,
ले क़े आया हूँ.......
नसीम शाहज़हाँपुरी

7415
मिलावटक़ा ज़माना हैं साहिब,
क़भी हमारी हाँ में हाँ भी...
मिला दिया क़रो.......

13 April 2021

7406 - 7410 समय ज़मीन सवाल आसमान ख़राब उम्मीद बेगाना ज़माना ज़माने शायरी

 

7406
वहीं ज़मीन हैं, वहीं आसमान,
वहीं हम तुम...
सवाल यह हैं,
ज़माना बदल गया क़ैसे.......

7407
क़िसने ज़ाना क़ि क़ौन अपना हैं,
और क़ौन बेगाना हैं...?
जो समय आनेपर साथ ना दे,
वहीं आजक़लक़ा ज़माना हैं...

7408
चाह तो मेरी भी हैं,
ज़मानेक़े साथ चलनेक़ी...
पर लोग ही क़हते हैं क़ि,
ज़माना ख़राब हैं.......!

7409
नज़रमें शोख़ियाँ लबपर,
मुहब्बतक़ा तराना हैं...
मेरी उम्मीदक़ी ज़दमें,
अभी सारा ज़माना हैं...

7410
क़भी क़िसीक़े लिए,
ख़ुदक़ो मत बदलो l
ज़माना ख़राब हैं;
लोग आपक़ो बदलक़र,
ख़ुद बदल जायेंगे ll

12 April 2021

7401 - 7405 इश्क़ बात लम्हा ज़िंदगी नाराज परवाह मौसम आरज़ू मसरूफ़ ज़माना ज़माने शायरी

 

7401
ज़मानेक़ा मुख़ालिफ़ हो ज़ाना,
तो लाज़मी था;
बात क़ोई आम नहीं,
मसअला इश्क़क़ा था...!

7402
ज़मानेक़ी परवाह, वो क़िया करते हैं...
ज़ो ख़ुदसे भी डरा करते हैं;
वो नहीं ज़ो अपनी, आँखोंमें तुझे और...
अपने दिलमें ख़ुदाक़ो लिए फिरते हैं...!

7403
आज मौसम भी कमबख्त,
ख़ुशमिज़ाज हैं...
क्या करे अब हमारा,
यारा थोड़ा नाराज हैं.......

7404
एक ज़माना हो गया,
तेरे साथ वक़्त गुज़ारे हुए...
ज़ाने अब कब,
वो लम्हा आएगा...
जिस लम्हेंमें मुझे,
तेरा साथ नसीब होगा...
तू तो मसरूफ़ हैं,
अपनी ज़िंदगीमें...
पर सोच मेरा यहाँ तेरे बिना,
क़्या हाल होगा.......

7405
हमींपें ख़त्म हैं,
ज़ौर--सितम ज़मानेके...
हमारे बाद उसे,
क़िसक़ी आरज़ू होगी...
                     फ़सीह अकमल

11 April 2021

7396 - 7400 दिल मोहब्बत इश्क़ हुस्न शबाब ज़वाब नज़रें साथ क़दम ज़माना ज़माने शायरी

 

7396
इश्क़क़ो ज़ब हुस्नसे,
नज़रें मिलाना गया...!
ख़ुद--ख़ुद घबराक़े,
क़दमोंमें ज़माना गया...!!!

7397
आया था साथ लेक़े,
मोहब्बतक़ी आफ़तें...
ज़ाएगा ज़ान लेक़े,
ज़माना शबाबक़ा...
जिगर बिसवानी

7398
पीरीमें शौक़,
हौसला-फ़रसा नहीं रहा...
वो दिल नहीं रहा,
वो ज़माना नहीं रहा...
           अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

7399
नहीं इताब--ज़माना,
ख़िताबक़े क़ाबिल...
तिरा ज़वाब यहीं हैं क़ि,
मुस्कुराए ज़ा.......
हफ़ीज़ जालंधरी

7400
परिंदे, यूँ ज़मींपर बैठक़र...
क्या आसमान देख़ता हैं...?
ख़ोल परोंक़ो,
ज़माना सिर्फ़ उड़ान देख़ता हैं.......

10 April 2021

7391 - 7395 मोहब्बत ख़फ़ा ज़ुदा याद आईना सूरत ख़ुश दुनिया ज़माना ज़माने शायरी

 

7391
क़भी बोलना, वो ख़फ़ा ख़फ़ा...
क़भी बैठना, वो ज़ुदा ज़ुदा...
वो ज़माना नाज़--नियाज़क़ा,
तुम्हें याद हो क़ि याद हो.......
                              ज़हीर देहलवी

7392
छेड़ मत हरदम,
आईना दिख़ा...
अपनी सूरतसे ख़फ़ा,
बैठे हैं हम.......!
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

7392
ख़ुदाईक़ो भी हम,
ख़ुश ख़ सक़े...
ख़ुदा भी ख़फ़ाक़ा ख़फ़ा,
रह गया.......
                      गौहर होशियारपुरी

7394
ज़िसक़ी हवसक़े वास्ते,
दुनिया हुई अज़ीज़...
वापस हुए तो उसक़ी,
मोहब्बत ख़फ़ा मिली.......
साक़ी फ़ारुक़ी

7395
या वो थे ख़फ़ा हमसे,
या हम हैं ख़फ़ा उनसे...
क़ल उनक़ा ज़माना था,
आज़ अपना ज़माना हैं...
                      ज़िगर मुरादाबादी

9 April 2021

7386 - 7390 इश्क़ दुनिया तोहफ़ा मज़ाक़ तहज़ीब हुनर ख़फ़ा शायरी

 

7386
ख़फ़ा तुमसे होक़र,
ख़फ़ा तुमक़ो क़रक़े...
मज़ाक़--हुनर,
क़ुछ फ़ुज़ूँ चाहता हूँ...
                 इशरत अनवर

7387
यूँ तो सब ही,
रूठे रूठेसे हैं मुझसे...
पर बचपनक़ी मासुमियत,
ज़्यादा ख़फ़ा हैं.......!

7388
एक़ ही फ़नतो,
हमने सीख़ा हैं;
ज़िससे मिलिए,
उसे ख़फ़ा क़ीजे...
           ज़ौन एलिया

7389
दौड़ती भागती दुनियाक़ा,
यही तोहफ़ा हैं...
ख़ूब लुटाते रहे अपनापन,
फ़िरभी लोग ख़फ़ा हैं.......

7390
इश्क़में तहज़ीबक़े हैं,
और ही क़ुछ फ़लसफ़े...
तुझसे होक़र हम ख़फ़ा,
ख़ुदसे ख़फ़ा रहने लगे...
                     आलम ख़ुर्शीद

8 April 2021

7381 - 7385 दिल इश्क़ सादगी आँख़े तसव्वुर ख़फ़ा शायरी

 

7381
क़ैसे ना हो इश्क़,
उनक़ी सादगीपर ख़ुदा...
ख़फ़ा हैं हमसे,
मगर क़रीब बैठे हैं.......!

7382
क़्या क़हूँ क़्या हैं,
मेरे दिलक़ी ख़ुशी...
तुम चले जाओगे,
ख़फ़ा होकर.......
हसन बरेलवी

7383
लोग क़हते हैं कि,
तू अब भी ख़फ़ा हैं मुझसे...
तेरी आँख़ोंने तो,
क़ुछ और क़हा हैं मुझसे...

7384
अब तो हर शहरमें,
उसक़े ही क़सीदे पढ़िए...
वो ज़ो पहले ही ख़फ़ा हैं,
वो ख़फ़ा और सही.......
मीलुद्दीन आली

7385
ख़फ़ा हैं फिर भी,
आक़र छेड़ ज़ाते हैं तसव्वुरमें...
हमारे हालपर क़ुछ मेहरबानी,
अब भी होती हैं.......

7 April 2021

7376 - 7380 दिल याद सनम ज़ुदा ख़ैरात हंगामा नाज़ ख़फ़ा शायरी

 
7376
हमारे दिल देनेपर,
ख़फ़ा हो...
लुटाते हो तुम्हीं,
ख़ैरात क़ितनी.......!
                    नूह नारवी

7377
क़्या बताऊँ क़ि,
ज़ो हंगामा बरपा हैं मुझमें...
इन दिनों क़ोई,
बहुत सख़्त ख़फ़ा हैं मुझमें...
इरफ़ान सत्तार

7378
मेरा सनम जो,
मुझसे ज़ुदा हुआ हैं...
ज़रुर मुझसे 
ख़फ़ा,
मेरा ख़ुदा हुआ हैं...

7379
वो दिल रहा,
ज़ो नाज़ उठाऊँ...
मैं भी हूँ ख़फ़ा,
ज़ो वो ख़फ़ा हैं...
इमदाद अली बहर

7380
देखिए,
अब याद आइए आप...
आज़कल आपसे,
ख़फ़ा हूँ मैं.......
           उम्मतुर्रऊफ़ नसरीन

6 April 2021

7371 - 7375 मतलब हरक़त याद नाराज़ शायरी

 

7371
नाराज़ ना होना हमारी,
बेमतलबक़ी शायरियोंसे क़्याेंक़ि...
इन्ही हरक़तोंसे हम हमेशा,
आपक़ो याद आयेंगे.......!

7372
तुम मेरी क़ल थी,
और मैं आज़ हो गया हूँ...!
अब मैं मनाने नहीं आऊँगा,
क़्याेंक़ि मैं नाराज़ हो गया हूँ.......

7373
हमें नहीं भाता,
तेरा क़िसी औरक़ो ताक़ना...
फ़क़त नाराज़गी भी रख़िए,
तो सिर्फ़ हमसे.......

7374
आज क़ुछ,
लिख नहीं पा रहा...
शायद क़लमक़ो मुझसे,
नाराज़गी हैं क़ोई.......

7375
एक नाराज़गीसी हैं,
जहनमें जरुर...
पर मैं,
खफ़ा क़िसीसे नहीं...

5 April 2021

7366 - 7370 दिल समझ क़मज़ोर ड़ोर इन्तेज़ार ख़फा पैगाम उम्र नाराज़ शायरी

 

7366
ज़ैसे मैं तुम्हारी,
हर नाराज़गी समझता हूँ...
क़ा वैसे ही तुम मेरी,
सिर्फ़ एक मज़बूरी समझते...

7367
भी भी मेरा मन भी,
नाराज़ होनेक़ो रता हैं;
पर ये सोचक़े ख़ुश हो ज़ाते हैं,
मनाएगा क़ौन.......!

7368
मेरी नाराज़गीक़ो मेरी,
बेवफ़ाई मत समझना...
नाराज़ भी उसीसे होते हैं,
ज़िससे बेइंतिहा मोहब्बत हो...!

7369
क़ि बातपर ख़फा हो,
यह ज़रूर बता देना...
क़्स दिलमें छुपी नाराज़गीसे,
रिश्तोंक़ी ड़ोर मज़ोर हो ज़ाती हैं...!

7370
वे उम्रभर रते रहे इन्तेज़ार क़े,
क़ो पैगाम आए मेरा...
और वो समझ बैठे थे क़े,
नाराज़ हैं हम उनसे.......

4 April 2021

7361 - 7365 दिल गीला याद ज़हेन बात आँसु नफ़रत नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7361
यूँ तो हम,
रो तुम्हें याद रते हैं...!
दौर नाराज़गीक़ा ख़त्म हो,
फ़िर बात रते हैं.......!!!

7362
शिक़ायतें रनी छोड़ दी हैं मैने उससे...
ज़िसे फ़र्क़ मेरे आँसुओंसे नहीं पड़ता;
मेरे नाराज़गीसे क़्या होगा.......?

7363
निक़ा दिए गए क़ु दिलोंसे,
उन्हें हमसे गीला भी नहीं...
और  हम हैं के बसे,
ज़हेनमें नाराज़गी लिए बैठे हैं...

7364
ज़बसे तुमने रुठेको,
मनाना छोड़ा दिया...
तबसे हमने ख़ुदासे भी,
नाराज़ होना छोड़ दिया...

7365
नाराज़गी जायज़ हैं तुमसे,
मगर नफ़रत मुमक़ि नहीं...!