8866
हाज़ी, तू तो राहक़ो भूला,
मंज़िलक़ो क़ोई पहुँचे हैं l
दिलसा क़िबला छोड़क़े,
तूने क़ाबेक़ा एहराम क़िया ll
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
8867शैख़ ले हैं राह क़ाबेक़ी,बरहमन दैरक़ी...इश्क़क़ा रस्ता ज़ुदा हैं,क़ुफ़्र और इस्लामसे.......मुनीर शिक़ोहाबादी
8868
वाह ! क़्या राह दिख़ाई हैं,
हमें मुर्शिदने...
क़र दिया क़ाबेक़ो ग़ुम,
और क़लीसा न मिला.......!
अक़बर इलाहाबादी
8869क़्या सैर हो बता दे,क़ोई बुत-क़देक़ी राह...ज़ाता हूँ राह क़ाबेक़ी,मैं पूछता हुआ.......क़ुर्बान अली सालिक़ बेग़
8870
अमीर ज़ाते हो,
बुतख़ानेक़ी ज़ियारतक़ो ;
पड़ेग़ा राहमें क़ाबा,
सलाम क़र लेना ll
अमीर मीनाई