1451
मेरा और उस "चाँद" का
मुकद्दर एक जैसा है "दोस्त",,,!!
वो "तारों" में तन्हा,
मै "यारों" में तन्हा.....।।
1452
सो जाओ मेरी तरह तुम भी
गम को सीने मे छुपाकर
रोने या जागने से कोई मिलता
तो हम तनहा ना होते।
1453
हुए बदनाम फिर भी ,
ना सुधर पाये हम ,
फिर वही इश्क; वही शायरी और ...,
वही
तुम।
1454
आखों कॆ परदॆ भी नम हो गयॆ है,
बातों कॆ सिलसिलॆ भी कम हो गयॆ है,
पता नही गलती किसकी है,
वक्त बुरा है या बुरे हम हो गयॆ है !
1455
दौलत नही, शोहरत नही,
न वाह चाहिए...
कैसे हो..?
दो लफ्ज की परवाह चाहिए...