3191
तूने ही किया
था मुझे,
मोहब्बतकी कश्तीमें
सवार...
अब आँखें न फेर,
मुझे डूबता भी
देख.......
3192
उम्मीदें
तैरती रहती हैं,
कश्तीयाँ डूब जाती
हैं...!
कुछ घर सलामत
रहते हैं,
आँधिया
जब भी आती
हैं...!
3193
मोहब्बतकी कश्तीमें...
जरा सोच समझकर,
सफर करना
यारो;
ये जब चलती
हैं,
तो किनारा
नहीं मिलता...
और...
जब डूबती हैं तो,
सहारा नहीं मिलता.......
3194
कश्ती कोई डूबती
हैं,
जब मझधारमें सहारा नहीं
मिलता;
इल्जाम इसका हमेशासे ही,
लहरोंपे हैं लगता...
लहर तो अपनेही
मस्तीमें अकेली
चलती हैं,
साहीलसे मिलने...
उसे क्या पता...
कौनसी कश्तीका सहारा,
छोड़
दिया अपनोनें...!
3195
न माँझी, न रहबर, न हकमें हवाएं...
हैं कश्ती भी जर्जर, ये कैसा सफर
हैं,
अलग ही मजा
हैं फ़कीरीका
अपना...
न पानेकी
चिंता न खोनेका डर हैं.......!