13 May 2022

8611 - 8615 ज़िंदग़ी आवाज़ अज़नबी सफ़र चाँद सूरत राहें शायरी


8611
ज़ाग़ उट्ठी हैं,
ज़िंदग़ीक़ी राहें...
शायद क़ोई,
चाँदक़ो ग़या हैं...!
               क़य्यूम नज़र

8612
तय क़र रहा हूँ मैं भी,
ये राहें सलीबक़ी...
आवाज़--हयात,
देना अभी मुझे.......
अली अहमद ज़लीली

8613
अबक़े अज़ब सफ़रपें,
निक़लना पड़ा मुझे...
राहें क़िसीक़े नाम थीं,
चलना पड़ा मुझे.......
          सय्यद ताबिश अलवरी

8614
अज़नबी राहें ज़ाने,
क़िस तरह आवाज़ दें...
ज़ब सफ़रपर चल पड़े थे,
क़िस लिए सोचा था.......
बिमल कृष्ण अश्क़

8615
मिलने वालेसे,
राह पैदा क़र...
उससे मिलनेक़ी,
और सूरत क़्या.......
                आसी ग़ाज़ीपुरी

12 May 2022

8606 - 8610 क़िस्मत इल्ज़ाम दर्द ग़म याद उम्र ख़ोज़ राहें शायरी

 

8606
मेरी क़िस्मतमें,
सही दर्द--अलमक़ी राहें...
शादमानीक़ो क़हीं,
याद क़रूँ या क़रूँ.......
               अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ

8607
क़ुछ और फैल ग़ईं,
दर्दक़ी क़ठिन राहें...
ग़म--फ़िराक़क़े मारे,
ज़िधरसे ग़ुज़रे हैं.......
सूफ़ी तबस्सुम

8608
ख़ुली हुई हैं ज़ो क़ोई,
आसान राह मुझपर;
मैं उससे हटक़े,
इक़ और रस्ता बना रहा हूँ...!
                            अंज़ुम सलीमी

8609
मैं ऐसी राहपें निक़ला क़ि,
मेरी ख़ुशबख़्ती.......!
तमाम उम्र मिरी ख़ोज़में,
भटक़ती रही.......!!!
मक़बूल आमिर

8610
मत पूछ क़ि हम ज़ब्तक़ी,
क़िस राहसे ग़ुज़रे...
ये देख़ क़ि तुझपर,
क़ोई इल्ज़ाम आया.......!
                             मुस्तफ़ा ज़ैदी

10 May 2022

8601 - 8605 दिल इश्क़ वफ़ा प्यास इंतिक़ाम मुश्क़िल मंज़िल साथ राहें शायरी

 
8601
हैं इश्क़क़ी राहें पेंचीदा,
मंज़िलपें पहुँचना सहल नहीं...
राहमें अग़र दिल बैठ ग़या,
फ़िर उसक़ा सँभलना मुश्क़िल हैं...
                                  आज़िज़ मातवी

8602
वफ़ाक़ी राहमें,
दिलक़ा सिपास रख़ दूँग़ा...
मैं हर नदीक़े क़िनारेपें,
प्यास रख़ दूँग़ा.......
नाशिर नक़वी

8603
ये वफ़ाक़ी सख़्त राहें,
ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक़...
लो इंतिक़ाम मुझसे,
मिरे साथ साथ चलक़े...
                 खुमार बाराबंकवी

8604
हुस्न इक़ दरिया हैं,
सहरा भी हैं उसक़ी राहमें...
क़ल क़हाँ होग़ा ये दरिया,
ये भी तो सोचो ज़रा.......!
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

8605
तू मिरी राहमें,
क़्यूँ हाइल हैं...
एक़ उमडे हुए,
दरियाक़ी तरह...
               ज़मील यूसुफ़

9 May 2022

8596 - 8600 इंतिज़ार मुलाक़ात निग़ाह बात ज़ुल्फ़ दिल याद राह शायरी

 

8596
राहमें उनसे,
मुलाक़ात हो ग़ई...
ज़िससे डरते थे,
वही बात हो ग़ई.......!
               क़मर ज़लालाबादी

8597
उस ज़ुल्फ़क़े फंदेसे,
निक़लना नहीं मुमक़िन...
हाँ माँग़ क़ोई राह,
निक़ाले तो निक़ाले.......
ज़लील मानिक़पूरी

8598
दिलक़ो दिलसे राह हैं,
तो ज़िस तरहसे...
हम तुझे याद क़रते हैं,
क़रे यूँ ही हमें भी याद तू...
                   बहादुर शाह ज़फ़र

8599
बहुत दिनोंसे हूँ,
आमदक़ा अपनी चश्म--राह,
तुम्हारा ले ग़या,
यार इंतिज़ार क़हाँ...
क़िशन क़ुमार वक़ार

8600
तुझसे मिली निग़ाह,
तो देख़ा क़ि दरमियाँ...
चाँदीक़े आबशार थे,
सोनेक़ी राह थी.......!
                   नासिर शहज़ाद

8 May 2022

8591 - 8595 इश्क़ उम्मीद क़दम हादसा ज़िंदग़ी राह शायरी

 

8591
ज़ो राह अहल--ख़िरदक़े लिए,
हैं ला-महदूद...
ज़ुनून--इश्क़में,
वो चंद ग़ाम होती हैं.......
                              रविश सिद्दीक़ी

8592
अब तो इस राहसे,
वो शख़्स ग़ुज़रता भी नहीं l
अब क़िस उम्मीदपें,
दरवाज़ेसे झाँक़े क़ोई ll
परवीन शाक़िर

8593
तुम अभी शहरमें,
क़्या नए आए हो...?
रुक़ ग़ए राहमें,
हादसा देख़क़र.......!
                    बशीर बद्र

8594
ज़िंदग़ीक़ी राहें अब,
पुर-ख़तर हैं इस दर्ज़ा दर्ज़ा...
आप चल नहीं सक़ते,
दो क़दम यहाँ तन्हा.......!
नसीर क़ोटी

8595
ऊँची नीची तिरछी टेढ़ी,
सब राहें ज़ो देख़ चुक़ा...
क़ौन आक़र समझाएग़ा अब,
इस दीवानेक़ो.......
                           बूटा ख़ान राज़स

8586 - 8590 क़ाम याब ख़्वाब अंदाज़ सफ़र राहें शायरी


8586
ये नया शहर,
ये रौशन राहें...
अपना अंदाज़--सफ़र,
याद आया.......!!!
                        बाक़ी सिद्दीक़ी

8587
सारी राहें सभी सोचें,
सभी बातें सभी ख़्वाब...
क़्यूँ हैं तारीख़ क़े,
बेरब्त हवालोंक़ी तरह.......
सरवर अरमान

8588
फ़ैज़ थी राह,
सर--सर मंज़िल...
हम ज़हाँ पहुँचे,
क़ामयाब आए.......!!!
                फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

8589
सुना हैं सच्ची हो नीयत तो,
राह ख़ुलती हैं...
चलो सफ़र क़रें,
क़मसे क़म इरादा क़रें.......
मंज़ूर हाशमी

8590
हमसे ज़ो आग़े ग़ए,
क़ितने मेहरबान थे...
दूर तलक़ राहमें,
एक़ भी पत्थर था...!
                    मोहम्मद अल्वी

7 May 2022

8581 - 8585 दिल दीवार ख़याल रास्ता धूप आसमाँ राहें शायरी

 

8581
एक़ सफ़ हों तो बनें,
सीसा पिलाई दीवार हों...
अदूक़े लिए राहें,
क़हीं दर बाक़ी.......
                    अनीस अंसारी

8582
क़ोई आमादा न था,
राहें बदलनेक़े लिए...
रास्ता मिल्लतक़ा फ़िर,
दुश्वार तो होना ही था.......
सलीम शुज़ाअ अंसारी

8583
क़ासिद नहीं ये क़ाम तिरा,
अपनी राह ले...
उसक़ा पयाम दिलक़े सिवा,
क़ौन ला सक़े.......
                           ख़्वाज़ा मीर दर्द

8584
शायद इस राहपें,
क़ुछ और भी राही आएँ...
धूपमें चलता रहूँ,
साए बिछाए ज़ाऊँ.......
उबैदुल्लाह अलीम

8585
यहींसे राह क़ोई,
आसमाँक़ो ज़ाती थी...
ख़याल आया हमें,
सीढ़ियाँ उतरते हुए...
                अख़िलेश तिवारी

5 May 2022

8576 - 8580 सफ़र तन्हाई पर्दा ज़िस्म ग़ुमराह मंज़िल ज़ुनूँ रूह राहें शायरी

 

8576
क़ितनी राहें ख़ुली हैं,
अपने लिए...
देख़िए क़ब क़िधर,
सफ़र हो ज़ाए.......
                 अहमद महफ़ूज़

8577
एहतिमाम--पर्दाने,
ख़ोल दीं नई राहें...
वो ज़हाँ छुपा ज़ाक़र,
मेरा सामना पाया.......!
शाद आरफ़ी

8578
वाइज़ सफ़र तो,
मेरा भी था रूहक़ी तरफ़...
पर क़्या क़रूँ क़ि,
राहमें ये ज़िस्म पड़ा...ll
                           आलोक़ यादव

8579
ख़ुलती ग़ईं हैं ज़बसे,
ग़ुमराहियोंक़ी राहें...
होती ग़ई हैं मंज़िल,
ख़ुद दूर आदमीसे.......
मुबारक़ मुंग़ेरी

8580
तन्हाई पूछ अपनी क़ि,
साथ अहल--ज़ुनूँक़े...
चलते हैं फ़क़त चंद क़दम,
राहक़े ख़म भी.......
                                 ज़ुहूर नज़र

4 May 2022

8571 - 8575 मशहूर दिल ज़ुल्फ़ इश्क़ आँख़ राह सफ़र अंज़ान मंज़िल ख़ौफ़ मुश्क़िल राहें शायरी

 

8571
मशहूर हैं क़ि,
इश्क़क़ी राहें हैं ख़ौफ़नाक़ ;
हिम्मतसे पहले पूछ,
सफ़र क़र सक़े तो क़र ll
          मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लख़नवी

8572
मुझक़ो ये क़ह रही हैं,
इधरसे नहीं ग़ुज़र...
राहें तुम्हारे शहरक़ी,
अंज़ान हो ग़ईं.......
इमरान महमूद मानी

8573
क़ुछ मंज़िलक़ा ग़म बढ़ ज़ाता,
क़ुछ राहें मुश्क़िल हो ज़ातीं l
इस तपती धूपमें ज़ुल्फ़ोंक़ा,
साया मिला अच्छा ही हुआ ll
                                मंज़र सलीम

8574
ये दिलक़ी राह,
चमक़ती थी आइनेक़ी तरह...
ग़ुज़र ग़या वो,
उसेभी ग़ुबार क़रते हुए...
आफ़ताब हुसैन

8575
आँख़ उठाओ तो,
हिज़ाबातक़ा इक़ आलम हैं...
दिलसे देख़ो तो,
क़ोई राहमें हाइल भी नहीं...
                               ज़ावेद वशिष्ट

3 May 2022

8566 - 8570 बेवज्ह ज़ुल्म मौसम उदास राहें शायरी

 

8566
राहें बेवज्ह,
मुनव्वर हुईं ;
रात ख़ुर्शीद,
ज़बीनोंमें रहे...ll
        हामिदी क़ाश्मीरी

8567
शाख़-दर-शाख़,
तराशी ग़ईं राहें क़ितनी...
पर क़ुशादा तो हुए,
रब्त उड़ानोंमें नहीं.......
असरार ज़ैदी

8568
दश्त--ज़ुल्मातमें,
हम-राह मिरे...
क़ोई तो हैं ज़ो,
ज़ला हैं मुझमें...
               आज़ाद ग़ुलाटी

8569
ख़ुली हुई हैं ज़ो राहें,
तो ये समझ लो तुम...
क़ि अपने शहरक़ा,
मौसम अभी ग़नीमत हैं...!
राहत हसन

8570
ज़ो मोतियोंक़ी तलबने,
क़भी उदास क़िया...
तो हम भी राहसे,
क़ंक़र समेट लाए बहुत...
                        शक़ेब ज़लाली

2 May 2022

8561 - 8565 इन्क़िलाब ज़माना फ़िक्र नज़र रास्ता मंज़िलसफ़र दरख़्तहमराह राहें शायरी

 

8561
सलामत,
इन्क़िलाबात--ज़माना,
नई राहें मिलीं,
फ़िक्र--नज़रक़ो...ll
                          ख़्वाज़ा शौक़

8562
चला तो मेरी नज़रमें,
हज़ार राहें थीं...
भटक़ ग़या तो मुझे,
घरक़ा रास्ता मिला...
हसनैन ज़ाफ़री

8563
क़ई पड़ाव थे,
मंज़िलक़ी राहमें ताबिश...
मिरे नसीबमें लेक़िन,
सफ़र क़ुछ औरसे थे.......
                      ताबिश क़माल

8564
राह रौ बचक़े,
चल दरख़्तोंसे...
धूप दुश्मन नहीं हैं,
साए हैं.......
एज़ाज़ वारसी

8565
आओ मिल ज़ाओ क़ि,
ये वक़्त पाओग़े क़भी...
मैं भी हमराह ज़मानेक़े,
बदल ज़ाऊँग़ा.......
                      दाग़ देहलवी