4186
बडा ही खामोशसा अंदाज हैं तेरा...
समझ नहीं आता,
फिदा हो जाऊँ...
या फनाह हो
जाऊँ.......!
4187
काश तू सुन
पाता,
खामोश सिसकियाँ
मेरी;
आवाज़ करके रोना
तो,
मुझे आज
भी नहीं आता...
4188
इज़हारे इश्क़का,
मज़ा तो तब हैं...
मैं खामोश रहूँ,
और
वो बैचैन.......!
4189
ये जो खामोशसे,
अल्फाज़ लिखे
हैं ना;
पढना कभी ध्यानसे,
चीखते कमाल
हैं.......!
4190
लोग शोरसे,
जाग जाते हैं और;
मुझे एक
शख़्सकी खामोशी...
सोने नहीं देती.......!