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बे-ख़ुदीमें ले लिया,
बोसा ख़ता कीजे मुआफ़...
ये दिल-ए-बेताबकी सारी ख़ता थी,
मैं न था.......
बहादुर शाह ज़फ़र
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क्या क़यामत हैं कि,
आरिज़ उनके नीले
पड़ गए...
हमने तो बोसा
लिया था,
ख़्वाबमें
तस्वीरका.......
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उस लबसे मिल ही जाएगा,
बोसा कभी तो हाँ...
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ,
जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए...
मिर्ज़ा ग़ालिब
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दिखाके जुम्बिश-ए-लब
ही,
तमाम कर हमको...
न दे जो
बोसा तो,
मुँहसे कहीं जवाब
तो दे.......
मिर्ज़ा ग़ालिब
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उस वक़्त दिलपें क्यूँके,
कहूँ क्या गुज़र गया...
बोसा लेते लिया तो सही,
लेक मर गया.......
आबरू शाह मुबारक