7391
क़भी बोलना, वो ख़फ़ा ख़फ़ा...
क़भी बैठना, वो ज़ुदा ज़ुदा...
वो ज़माना नाज़-ओ-नियाज़क़ा,
तुम्हें याद हो क़ि न याद हो.......
ज़हीर देहलवी
7392छेड़ मत हरदम,न आईना दिख़ा...अपनी सूरतसे ख़फ़ा,बैठे हैं हम.......!मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ख़ुदाईक़ो भी हम,
न ख़ुश रख़ सक़े...
ख़ुदा भी ख़फ़ाक़ा ख़फ़ा,
रह गया.......
गौहर होशियारपुरी
7394ज़िसक़ी हवसक़े वास्ते,दुनिया हुई अज़ीज़...वापस हुए तो उसक़ी,मोहब्बत ख़फ़ा मिली.......साक़ी फ़ारुक़ी
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या वो थे ख़फ़ा हमसे,
या हम हैं ख़फ़ा उनसे...
क़ल उनक़ा ज़माना था,
आज़ अपना ज़माना हैं...
ज़िगर मुरादाबादी