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उम्र फानी हैं, तो फ़िर...
मौतसे क्या ड़रना ?
न इक़ रोज़,
यह हंग़ामा हुआ रख़ा हैं...
मिर्जा ग़ालिब
7617मौतक़ा नहीं खौफ मगर,एक़ दुआ हैं रबसे...क़ि ज़ब भी मरु तेरे होनेक़ा,एहसास मेरे साथ मर ज़ाये.......
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थी इश्क़-ओ-आशिक़ीक़े लिए,
शर्त ज़िंदगी...
मरनेक़े वास्ते मुझे,
ज़ीना ज़रूर था.......
ज़लील मानिक़पुरी
7619हम ज़ैसे बर्बाद दिलोंक़ा,ज़ीना क्या और मरना क्या...आज़ तेरी महफ़िलसे उठे हैं,क़ल दुनियासे उठ ज़ायेगें.......
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परवानेंक़ो शम्मापें ज़लक़र,
क़ुछ तो मिलता होग़ा...
वरना सिर्फ मरनेक़े लिए तो,
क़ोई मोहब्बत नहीँ क़रता.......!