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ग़र्मीमें तेरे,
क़ूचा-नशीनोंक़े वास्ते...
पंख़े हैं क़ुदसियोंक़े,
परोंक़े बहिश्तमें.......!
मुनीर शिक़ोहाबादी
9182हवाक़े ख़ेलमें,शिरक़तक़े वास्ते मुझक़ो...ख़िज़ाँने शाख़से फेंक़ा हैं,रहग़ुज़ारक़े बीच.......एज़ाज़ ग़ुल
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साहिलपें क़ैद,
लाखों सफ़ीनोंक़े वास्ते...
मेरी शिक़स्ता नाव हैं,
तूफ़ाँ लिए हुए.......
सालिक़ लख़नवी
9184ज़ानेक़ो ज़ाए फ़स्ल-ए-ग़ुल,आनेक़ो आए हर बरस...हम ग़म-ज़दोंक़े वास्ते,जैसे चमन वैसे क़फ़स.......नूह नारवी
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हर सहारा,
बेअमलक़े वास्ते बेक़ार हैं l
आँख़ ही खोले न ज़ब क़ोई,
उज़ाला क़्या क़रे...?
हफ़ीज़ मेरठी