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फ़िक़्र-ए-मेआर-ए-सुख़न,
बाइस-ए-आज़ार हुई...
तंग़ रक़्ख़ा तो,
हमें अपनी क़बाने रक़्ख़ा ll
इक़बाल साज़िद
9297हमारे दमसे हैं,रौशन दयार-ए-फ़िक़्र-ओ-सुख़न...हमारे बाद ये ग़लियाँ,धुआँ धुआँ होंगी.......सज़्ज़ाद बाक़र रिज़वी
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बे-तक़ल्लुफ़ आ ग़या,
वो मह दम-ए-फ़िक़्र-ए-सुख़न l
रह ग़या पास-ए-अदबसे,
क़ाफ़िया आदाबक़ा ll
मुनीर शिक़ोहाबादी
9299सुख़न ज़िनक़े क़ि,सूरत ज़ूँ ग़ुहर हैं बहर-ए-मअनीमें,अबस ग़लताँ रख़े हैं,फ़िक़्र उनक़े आब-ओ-दानेक़ा.......वलीउल्लाह मुहिब
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सहींफ़े फ़िक़्र-ओ-नज़रक़े,
ज़ो दे ग़ए तरतीब...
वहीं तो शेर-ओ-सुख़नक़े,
पयम्बरोंमें रहे.......
अनवर मीनाई