2821
जमाल ए
यारमे,
रंगोका इम्तियाज तो
देख,
सफेद झुठ है,
जालिमके सुर्ख
होठोंपर.......
2822
ज़िन्दगीमें ज़िन्दगीसे,
हर चीज़ मिली;
मगर उनके बाद,
फिर ज़िन्दगी न मिली...
2823
लेकर आना उसे
मेरे जनाजेमे,
एक आखरी हसीन
मुलाकात होगी;
मेरे जिस्ममे जान
न हो मगर,
मेरी जान मेरे
जिस्मके पास
होगी...!
2824
ज़िंदग़ी ज़ैसे ज़लानी
थी,
वैसे ज़ला दी
हमने ग़ालिब...
अब धुएँपर बहस
क़ैसी और,
राख़पर ऐतराज़ क़ैसा...?
2825
मैं दुनियाके जलनेका,
इंतजाम कर आया,
तू ही इश्क
मेरा,
ये खुले आम
कह आया...!