1411
अपनों के बीच अपना तुम मुकाम ढुँढते हो ,
फिर शहर की भीड में क्यों इंसान ढुँढते हो .
खुदगर्जी की हद तो अाप अपनी देखिए ,
हाथों में सर लिए हरदम परेशान घुमते हो.
जमीर का फरेब कहें या कहें नसीब तेरा ,
जब भी चुमते हो बस खिंजा ही चुमते हो.
निदामत नहीं दिखती कभी चेहरे पे तेरे ,
तभी मक्तल में तुम सुब्हो-शाम घुमते हो .
फायक हैं वे जिन्होने गरीबों का प्यार देखा,
तुम जो हो के दौलत में भगवान ढुँढते हो .
1412
आंखों में आ जाते हैं आंसू,
फिर भी लबों पे हंसी
रखनी पड़ती है।
ये मुहब्बत भी
क्या चीज है यारों?
जिस से करते हैं
उसी से छुपानी पड़ती है।
1413
ख़ुशी कहा हम तो
"गम" चाहते है,
ख़ुशी उन्हे दे दो
जिन्हें "हम" चाहते हे.
जबरदस्ती मत मॉँगना साथ कभी ज़िन्दगी में किसी का,
कोई ख़ुशी से खुद चलकर आये
उसकी 'ख़ुशी' ही कुछ और होती है...
1414
मैंने पूछ लिया-
क्यों इतना दर्द दिया कमबख़्त तूने ?
वो हँसी और बोली-
"मैं ज़िंदगी हूँ !
पगले तुझे जीना सिखा रही
थी !!
1415
इस दुनिया मे कोई किसी का
हमदर्द नहीं होता,
लाश को बाजु में रखकर अपने लोग ही पुछ्ते हैं।😔
"और कितना वक़्त लगेगा . . ."